Avsnitt

  • मौजूदा समय में सरकार व न्यायपालिका से जुड़े कई अहम विषय चर्चा के केंद्र में बने हुए हैं। सरकार और न्यायपालिका के संबंध कैसे हो इस पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं। लोगों का न्याय पाना मुश्किल हो रहा हैं। पेंडिंग मुकदमों की संख्या लगातार बढ़ रहीं हैं। नागरिक अधिकारों पर हमलों के केस बढ़ रहें हैं। कॉलेजियम में गुटबाजी के अलवा नागरिकों के मौलिक कर्तव्यों और मौलिक अधिकारों पर नए सिरे से मंथन की बातें सामने आ रही है। इन सभी जटिल व पेचीदा पहलुओं पर नवभारत टाइम्स के लिए महेंद्र कुमार ने सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश अशोक भान से खास चर्चा की है। भान भारतीय राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण के कार्यकारी अध्यक्ष, राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग के अध्यक्ष के रूप में कार्य कर चूके है। इसके अलावा भारत सरकार की गई महत्वपूर्ण कमेटियों की अध्यक्षता कर चुके हैं। आपके लिए प्रस्तुत है उनसे की गई चर्चा के खास अंश :-


  • एनआईएसडी बुजुर्गो, ट्रांसजेंडर व युवाओं को स्वावलंबी प्रतिबद्ध.


    इस संकट के दौर में नकारात्मकता को समाज से दूर करने के लिए दिल्ली और दिल्ली समाचार पत्र द्वारा देश के लोकप्रिय विचारकों के साथ संवाद का आयोजन किया जा रहा है। इसी कड़ी में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल डिफेंस के निदेशक डॉ वीरेंद्र मिश्रा से दिल्ली और दिल्ली समाचार पत्र के उप संपादक महेंद्र कुमार ने खास चर्चा की है।

    एक नजर डॉ वीरेंद्र मिश्रा के परिचय पर*

    डॉ वीरेंद्र मिश्रा सामाजिक सरोकारों से जुड़े देश के लोकप्रिय लोगों में शामिल है। इन्होंने एआईजी के रूप में पुलिस में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है। दुनिया के सबसे बड़े युवाओं के संगठन नेहरू युवा केंद्र संगठन में श्री मिश्रा अतिरिक्त निदेशक व एनएसएस में निदेशक की भूमिका निभा चुके है। इसके अलावा सामाजिक सरोकार से जुड़े अनेक विषयों पर अनेक मंचों पर विचारों की प्रस्तुति करते रहते हैं। श्री मिश्रा देश के युवाओं के लिए प्रेरणा स्रोत है।


    *हम आपके लिए प्रस्तुत कर रहे हैं साक्षात्कार के प्रमुख अंश*



    *NISD सामाजिक विकास में विगत कई सालों से महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहा है। इस संस्थान का प्रमुख होना आपके लिए कितना मायने रखता है ?*

    एनआईएसडी सामाजिक विकास में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। यह संस्थान मुख्य रूप से चार वर्गों बुजुर्गों, ट्रांसजेंडर, भिक्षावृत्ति में लिप्त लोगों, व युवाओं के लिए काम करता है। ये सारे विषय समाज के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। इस कोरोना संकट के कारण इन वर्गों से तालुकात रखने वाले लोगों की स्थिति और भी बदतर हो गई है। इसलिए एनआईएसडी ने इस वर्ग से तालुकात रखने वाले इन लोगों को प्राथमिकता में लिया है। इन तमाम वर्गों के लोगों को हम सामाजिक रूप से मजबूत करने के लिए लगातार काम कर रहे हैं।हमारी कोशिश समाज में जागरूकता लाने की है चाहे वह पूरक या परोक्ष रूप से हो। हमारा लक्ष्य इन तमाम लोगों को जरूरी मदद उपलब्ध करवाना है।



    *NISD के 60 साल के स्वर्णिम इतिहास के विषय में आपका क्या कहना है ?*

    एनआईएसडी एक ऐसा संस्थान है जो लगातार विकास कि और अग्रसर हो रहा है। इसके कार्य करने की क्षमता में लगातार विस्तार हो रहा है। जो भी अधिकारी इस संस्थान से जुड़े रहे उन्होंने संस्थान के विकास में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है। इस संस्थान के साथ अनेक राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर के संस्थान भी जुड़े हुए हैं। ट्रांसजेंडर तबके का कानून आने के बाद हमने इस तबके के विकास के लिए और तेजी से कार्य करना शुरू कर दिया है। इस संस्थान ने अपनी इस यात्रा का सफर अनेक संस्थानों के साथ मिलकर तय किया है।

    *जब से आप NISD में निदेशक बने है। आपने ट्रांसजेंडर तबके को मुख्यधारा में लाने के लिए कार्य किया है उसके विषय में बताएं ?*

    यह विडंबना की बात है कि ट्रांसजेंडर तबके के लिए जब नया कानून आया तो उसके तुरंत बाद ही कोरोना के कारण देशव्यापी लॉक डाउन लग गया। इस वजह से इस समुदाय के लोगों के लिए हम ग्राउंड पर जाकर काम नहीं कर पाए। पर हमारे संस्थान द्वारा ऑनलाइन माध्यम से इस समुदाय के विकास के लिए लगातार काम किया जा रहा है। इसके अलावा अनेक लोगों पुलिस, युवाओं, जेल के अधिकारियों, गैर सरकारी संगठन, व पंचायतों के माध्यम से इस समुदाय के चौमुखी विकास के लिए हम प्रयासरत हैं। ऑनलाइन माध्यम से इस तबके से जुड़े लोगों के साथ हम चर्चा कर रहे हैं। हम लोग उन्हें इस कानून के विषय में उनके मन में चल रहे तमाम प्रश्नों की जिज्ञासा भी शांत कर रहे हैं। इसके अलावा उन लोगों को यह भी बताया जा रहा है कि वे इस नए कानून के माध्यम से अपनी स्थिति को बेहतर कैसे बना सकते हैं।



    *आप पुलिस में भी AIG के रूप में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर चुके हैं। अपने पुलिसिया अनुभव के विषय में बताएं ?*

    पुलिस में कार्य करने का अनुभव बहुत ही खूबसूरत होता है। यह एक ऐसी नौकरी होती है जो आपको समाज के बहुत नजदीक ले जाती है। ऐसी खुशकिस्मती अन्य विभागों में नौकरी कर रहे लोगों की नहीं होती है। पुलिस को समुदाय में चल रही अच्छी व बुरी गतिविधियों की भली-भांति जानकारी होती है। जितने बेहतर तरीके से एक समुदाय को पुलिस जान सकती है उतना कोई और नहीं कर सकता है। मेरे इस पुलिसिया अनुभव ने एनआईएसडी में मेरे कार्य करने की क्षमता को बढ़ाया है।

    *NISD नशा मुक्ति को बढ़ावा देने के लिए भी महत्वपूर्ण कार्य कर रहा है। उसके विषय में जानकारी दे ?*


    मैंने एनएसएस में निदेशक व नेहरू युवा केंद्र संगठन में अतिरिक्त निदेशक की जिम्मेवारी संभाली है। इन दोनों संगठनों से लगभग 85 लाख से अधिक युवा जुड़े हुए हैं।

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  • *"आज के दौर में गांधी की पत्रकारिता की प्रासंगिकता"*
    प्रो. केजी सुरेश कुलपति माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय भोपाल
    गांधीजी जितने सार्थक स्वतंत्रता संग्राम के दरमियान थे उतने ही आज भी है। गांधीजी के विचार आज भी उतने ही प्रासंगिक है। चाहे वह अस्पृश्यता का मामला हो या ग्राम स्वराज के लिए गांधी के विचार। हमें गांधीजी के विचारों का अनुकरण करने कि आज बहुत आवश्यकता है। जब हम हाथरस जैसे जघन्य अपराध हमारे समाज में देखते हैं। तब हमें सोचने की आवश्यकता है। हम गांधी जी की नैतिक मूल्य व आदर्शों को मानते तो हमारे समाज कितना भय मुक्त होता। कोरोना के कारण बड़े पैमाने पर शहर से लोगों ने ग्रामीण इलाकों की तरफ पलायन किया। गांधीजी ने ग्रामीण विकास की तरफ बहुत अधिक ध्यान दिया था। इस महामारी के बीच ग्रामीण इलाकों में हुआ पलायन फिर से हमें ग्राम स्वराज की तरफ सोचने के लिए प्रेरित कर रहा है। इस दिशा में देश की सरकार ने कुछ महत्वपूर्ण कदम उठाने शुरू भी कर दिये है। सरकार आत्मनिर्भर भारत की और कदम बढ़ा रही है।वही गांधीजी ग्रामीण स्वराज के लिए कार्य किया करते थे। गांधीजी का मानना था कि अगर भारत के सभी गांव स्वयं प्रभावशाली व संपन्न हो जाएंगे। देश के तमाम गांव अपनी मूलभूत आवश्यकताओं के लिए स्वयं की एक मजबूत अर्थव्यवस्था का ढांचा खड़ा कर लेंगे तब भारत का विकास मजबूती के साथ जल्दी हो जाएगा। मेरे लिए गांधी जयंती का मतलब गांधी जी के विचारों आदर्शों और मूल्यों को स्वयं आत्मसात करना है।


  • आज के दौर में जब ईमानदार पत्रकारिता की जमीन सिमटती जा रही है तो यह सवाल लाजिमी हो जाता है कि पत्रकारिता के मूल मूल्य कहां ठहरते हैं? और यह भी कि उन मूल्यों के साथ पत्रकारिता की क्या कोई संभावना बच रही है? ‘गांधी की पत्रकारिता’ ऐसे ही सवालों का जवाब हैं। दक्षिण अफ्रीका के अपने अख़बारी दिनों को याद करते हुए महात्मा गांधी ने अपनी आत्मकथा में लिखा है - ‘समाचार-पत्र सेवाभाव से ही चलाने चाहिए। समाचार-पत्र एक जबर्दस्त शक्ति है; लेकिन जिस प्रकार निरंकुश पानी का प्रवाह गांव के गांव डुबो देता है और फसल को नष्ट कर देता है, उसी प्रकार निरंकुश कलम का प्रवाह भी भयंकर विनाश कर सकता है। गांधी जयंती के अवसर पर हमारे समाचार पत्र दिल्ली और दिल्ली द्वारा गांधी संवाद श्रंखला का आयोजन किया गया है। इस संवाद श्रंखला की कड़ी में *दिल्ली और दिल्ली के उप संपादक महेंद्र कुमार* ने "महात्मा गांधी की पत्रकारिता और वर्तमान पत्रकारिता का स्वरूप" विषय पर देश के ख्याति प्राप्त वरिष्ठ पत्रकार व शिक्षाविद *प्रो. संजय द्विवेदी* महानिदेशक भारतीय जन संचार संस्थान नई दिल्ली से विशेष चर्चा की है। हम आपके लिए प्रस्तुत कर रहे हैं। गांधी जयंती के अवसर पर उनके साथ की गई चर्चा के प्रमुख अंश :-


    *महात्मा गांधी को एक पत्रकार के रूप में आप कैसे देखते हैं?*

    मुझे लगता है, महात्मा गांधी अपने समय के बहुत बड़े बड़े संचारक थे। उन्होंने 1904 में 'इण्डियन ओपिनियन' साप्ताहिक पत्र का प्रकाशन आरम्भ किया। 1919 में जब रॉलेट बिल पास हुआ जिसमें आम भारतीयों के आम अधिकार छीने गये जिसके विरोध में उन्होंने पहला अखिल भारतीय सत्याग्रह छेड़ा जो राष्ट्रव्यापी हड़ताल था। उसके बाद गांधी अंग़्रेजी साप्ताहिक पत्र 'यंग इण्डिया' व गुजराती साप्ताहिक 'नवजीवन' के संपादक के तौर पर नियुक्त हुए। 1933 में गांधी जी ने साप्ताहिक पत्र 'हरिजन' की स्थापना की, उसके बाद उन्होंने अपने साबरमती तट पर बने सत्याग्रह आश्रम का नाम हरिजन आश्रम रखा। इन अखबारों के माध्यम से गांधी जी ने भारतीय पत्रकारिता में एक महत्वपूर्ण हस्तक्षेप किया। भारतीय पत्रकारिता में गांधी की पत्रकारिता एक महत्वपूर्ण विरासत है। आज एक आदर्श और महान पत्रकार के रूप में गांधी को सभी याद करते हैं। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में पत्रकारिता का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। स्वतंत्रता आंदोलन में गांधी की पत्रकारिता ने लोगों को अंग्रेजों के विरुद्ध खड़े होने के लिए प्रेरित किया।

    *स्वतंत्रता आंदोलन में गांधी की पत्रकारिता का योगदान?*


    गांधी ने अपने समाचार पत्रों के माध्यम से स्वतंत्रता संग्राम के साथ ग्रामीण व शहरी दोनों तबके के लोगों को एक बड़े जन सैलाब के तौर पर जुड़ा था। महात्मा गांधी ने अन्य विचारकों को भी समाचार पत्र निकालने के लिए प्रेरित किया। इसका बड़ा उदाहरण है। भारत के पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू है उन्होंने गांधीजी के निर्देश पर 3 अखबार नेशनल हेराल्ड, नवजीवन कौमी आवाज की शुरुआत की थी। रामगोपाल माहेश्वरी ने नागपुर से नवभारत अखबार निकाला इसकी प्रेरणा भी उनको गांधीजी से ही मिली थी। गांधीजी की पत्रकारिता के दो मुख्य लक्ष्य रहे, एक सामाजिक बदलाव व दूसरा स्वतंत्रता आंदोलन। इन दोनों उद्देश्य को लेकर उनकी पत्रकारिता हमेशा समर्पित रही। गांधी जी ने बहुत बड़े लक्ष्य को लेकर पत्रकारिता की शुरुआत की थी। अगर आज हम उनकी पत्रकारिता के लक्ष्य और आदर्शों को माने तो समाज में घटित हो रही अप्रिय घटनाओं में कमी आ जाएगी।
    गांधीजी के मूल्यों को अगर हम पत्रकारिता में डालेंगे तो पत्रकारिता अधिक सार्थक व आदर्श हो जाएगी।

    *गांधी के पत्रकारिता दौर की तकनीक और वर्तमान दौर की तकनीक पर आपके क्या विचार है?*

    गांधीजी की पत्रकारिता का समय रेडियो व अखबारों का था। उस समय जितने भी हमारे राष्ट्र नायक रहे उन्होंने अधिकांश अखबार या फिर रेलवे स्टेशनों की शुरुआत की थी। आज का वक्त उस समय के मुकाबले थोड़ा अलग है। आज के समय में सोशल मीडिया कुछ ज्यादा ही प्रभावी हो गया है। महान क्रांतिकारी सुभाष चंद्र बोस ने आजाद हिंद नाम से एक रेडियो स्टेशन की शुरुआत की थी। उस दौरान अन्य राष्ट्र नायकों ने समाचार पत्रों की शुरुआत की। अगर आज महात्मा गांधी होते तो वह भी वर्तमान पद्धतियों को ही अपनाते शायद वह अपना ट्विटर अकाउंट भी शुरु कर देते। इसके अलावा भी वह अन्य सोशल मीडिया के प्लेटफार्म पर एक्टिव हो जाते। हर समय का एक मीडिया होता है। समय के साथ-साथ संचार के माध्यमों में बदलाव आता रहता है।