Avsnitt

  • अपनी विशिष्टता का आनंद लें और दूसरों के काम आएं

    हममें से प्रत्येक व्यक्ति अपने आप में अलग है, विशिष्ट है। मैं जो भी हूं सिर्फ अपने जीवन की परिस्थितियों और अपने उन प्रयासों के कारण हूं जो मैंने ऐसा बनने की प्रक्रिया में किए हैं। आपको अपनी इस विशिष्टता का आनन्द लेना चाहिए, उसके लिए खुशी मनानी चाहिए। आपको कभी भी वैसा दिखने की कोशिश नहीं करनी चाहिए, जो आप नहीं हैं या आपको किसी अन्य व्यक्ति की तरह होने का दिखावा नहीं करना चाहिए। आप औरों से भिन्न होने के लिए ही पैदा हुए हैं। आप केवल 'आप' बनने के लिए ही हैं। समूची दुनिया में कहीं भी और कभी भी ही विचार नहीं आ रहे होंगे, जैसे अभी आपको आ रहे हैं और न ही किसी व्यक्ति की स्थितियां वैसी होंगी, जैसी आपके जीवन की हैं। कोई भी व्यक्ति वैसा हंसमुख, प्रसन्नचित्त और खुशी नहीं हो सकता, जैसे कि आप हैं। इसलिए अपनी विशिष्टताएं दूसरों के साथ साझा करें। यदि आपका अस्तित्व समाप्त हो जाता है, तो इस सृष्टि में एक छिद्र रह जाएगा, इतिहास में एक खालीपन रह जाएगा, मानव जाति की उत्पत्ति के लिए बनाई गई योजना में किसी चीज का अभाव रह जाएगा। इसलिए, अपनी विशिष्टता को संजो कर रखें। यह एक ऐसा उपहार है जो प्रकृति ने केवल आपको दिया है। दूसरों के काम आएं। अपने जीवन को जितना विस्तार दे सकें, दे डालें।

  • Hello all of you are welcome once again in the original light, today we have been coming in front of you once again with a great audio article, we hope you will like this audio article and it will also make you think, so let's hear this best and to your article .
    People from all over the world know very well that at this time if the whole world is in the midst of a problem, then it is 'Corona Pandemic' and there is only one way to get out of this problem, that is "Vaccination"

    India became completely free from the slavery of the British on 15 August 1947 and today on 15 August 2021, India is going to make its 75th Independence Day, which is a matter of honor for the citizens of India but the citizens of India for the last 2 years. They have been slaves to an epidemic for a long time and that epidemic is 'Corona' which has made their freedom to live like a captive.

    There is also a way for India to get out of this problem or get freedom from it, by adopting which other countries of the world are trying to get out of this problem or epidemic and that way is "Vaccination".
    But India's vaccination campaign or vaccination festival seems to be weakening or it is more correct to say that it was weak from the beginning.

    There are many reasons for India's vaccination campaign being weak or weak since the inception of the government, such as the lack of awareness of the people about the vaccination, due to the lack of vaccines, this vaccination campaign has been continuously weakening.

    In view of all these circumstances, it can definitely be said that it will take more time for India to make Independence Day of freedom from Corona virus and this time has been vaccinated on the vaccination of the people.
    Until all the people of India or 75% of the population of India are not vaccinated, it is difficult to get freedom from Corona.

    If we look at the statistics, so far only 9% of the population of India has been vaccinated with both doses or full vaccination and only 31% people have been vaccinated with one dose.
    This is a matter of concern for a country with a large population like India, because if vaccination could not be done properly or at the right time, then it must be considered that right now the citizens of India's fight for freedom from the corona epidemic is going to go on for a long time. And getting rid of Corona will not be possible.

    According to scientific estimates, it has also been completely decided that the third wave of corona epidemic will come in India in October or November, but in view of the negligence of the people and the shortcomings in the vaccination campaign, it seems that there is a possibility of corona epidemic in India. The effect of the third wave can be seen soon.

    On studying India's vaccination festival or vaccination campaign carefully, you see some shortcomings in this whole campaign, which is something like this.

    (1) Red-tapism for the purchase and sale of vaccines by governments .
    (2) Changes in the number of vaccines or in the figures of vaccines .
    (3) Lack of awareness about vaccines among people
    (4) Arrangements to ensure that the vaccines do not reach the vaccine centers properly.
    (5) Governments less attention to vaccination and more attention to event betting .

    All these shortcomings have been in India's vaccination and this is the biggest reason why India's vaccination campaign is struggling and seems to be weakening.

    This is not a good thing for India because India will make its Independence Day on 15th August but along with that we have to pay attention to vaccination to deal with Corona and to get free from it so that the people of India will be free from Corona Pandemic "Corona Mukti" Independence Day can be celebrated.

    And we have full faith that the people of India will be aware of vaccination as soon as possible and get themselves vaccinated and at the same time the state governments and central government will overcome their vaccination deficiencies.

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  • खुशमिजाज लोग आनंद व उद्देश्य में संतुलन रखते हैं

    जीवन के सबसे बड़े विरोधाभासों में से एक यह है कि इंसान को संतुष्टि मिलती है, जब वह जोखिमों से भरा, असहज और कभी-कभी बुरा लगने वाले काम भी सफलतापूर्वक कर लेता है। 48 देशों के दस हजार से ज्यादा लोगों से बात करने के बाद मनोविशेषज्ञ इड डायनर और उरबाना इस नतीजे पर पहुंचे कि दुनिया के किसी भी कोने में लोगों को सबसे ज्यादा किसी एक चीज की तलाश है, तो वो है खुशी... मतलब जीवन में आनंद, उद्देश्य और संतुष्टि।

    शोध-अध्ययनों से निष्कर्ष निकला कि आनंद से भरे हुए लोग उम्मीदों से विपरीत ऐसी आदतों को जीवन में अपनाते हैं, जो हमें दूर से देखने पर कठिन या दुखदायी लगती हैं। पहला है जोखिमलेना। सफल लोगों को लगता है कि खुशी सिर्फ मनपसंद काम करने में नहीं है, बल्कि अपना कंफर्ट जोन छोड़कर कुछ पाने में है। 2007 के एक अध्ययन में 21 दिन कुछ लोगों पर नजर रखी गई। जो लोग निरंतर जोखिम लेते हुए कुछ नया सीख रहे थे, वे अपेक्षाकृत रूप से ज्यादा खुश

    थे। किसी चीज को न जानने वाली स्थिति खीझ उत्पन्न कर सकती है, लेकिन जब आप सीखने का मन बना लेते हैं, तो ये खुशी की वजह भी बन जाती है। इसके लिए उत्सुकता बेहद जरूरी है।

    हमेशा मुस्कराते रहने वाले. खुशमिजाज लोगों के बारे में आम राय होती है कि ऐसे लोग धरातल पर नहीं जीते। पर असल में ऐसे लोग जीवन उलटफेर पर बहुत ज्यादा चिंतित नहीं होते। उनके लिए हर फीलिंग एक सौ होती है। किसी में बहुत ज्यादा खुसी या बहुत ज्यादा दुख नहीं होता। ऐसे लोग हर भावना के लिए बराबर समय निकालते हैं। खुश लोग अपने जीवन में आनंद और उद्देश्यका संतुलन बनाए रखते हैं।

  • ऊर्जा का स्त्रोत बनना चाहते हैं तो ये उपाय आजमाकर देखिए

    आपके इर्द-गिर्द अगर कोई लगातार नकारात्मक बातें कर रहा है, ऐसे में पॉजिटिव बने रहना मुश्किल हो जाता है। दूसरों को भी नकारात्मकता से भर देने वाले इंसान के साथ कोई वक्त नहीं बिताना चाहता आप कैसा इंसान बनना चाहते हैं? दूसरों को ऊर्जा से भरने वाले या अपनी बातों से उनकी ऊर्जा खत्म करने वाले ऊर्जा का संचार करने वाले व्यक्ति बनना चाहते हैं, तो अपने अंदर अतिरिक्त रूप से सकारात्मक नजरिया विकसित करना होगा। इसके लिए चंद उपाय आजमाने होंगे।

    1. अपने दिमाग में न्यूरॉन्स को प्रभावित करके तत्काल सकारात्मक हो जाना मुमकिन नहीं है। 'आउटस्मार्ट योर स्मार्टफोन' किताब की लेखिका डाव्ल्स विभिन्न अध्ययनों व साक्षात्कारों के आधार पर कहती हैं कि सकारात्मकता समय मांगती है, लेकिन इच्छाशक्ति व निरंतरता से यह आसान है। दिमाग को सकारात्मक सूचनाएं देते रहिए, सकारात्मक शब्दावली प्रयोग करिए। जब एटीट्यूड पॉजिटिव होगा, तो विचार, स्मृतियां व भावनाएं भी उसी दिशा में काम करने लगेंगी।

    2. सकारात्मकता के लिए जद्दोजहद करने वाले लोग किसी भी हालात, व्यक्ति या वस्तु

    में नकारात्मकता खोज ही लेते हैं। अगली बार अगर आप ऐसे किसी भी हालात में फंसें तो खुद से चंद सवाल पूछें कि इस परिस्थिति में कुछ अवसर है? इससे क्या कुछ सीखा जा सकता है? इस तरह आप अपना ध्यान बांटकर ऊर्जा बचा सकते हैं।

    3. अगर आप अपने काम में विनम्रता रखेंगे, तो ये व्यक्तित्व में भी झलकेगी। विनम्रता साथ चंद प्रशंसा के लफ्ज अपनों को कहते रहें। ये आपकी परवाह दर्शाते हैं।

    4, पॉजिटिव एटीट्यूड, सकारात्मक सोचने और काम करने से कहीं ज्यादा है। सही मायनों में सकारात्मकता मतलब जोवन का आनंद लेना है। जिंदगी में हर क्षण का लुत्फ उठाते रहिए। इस तरह आप दूसरों के लिए, ऊर्जा पुंज का काम करेंगे।


  • खुद को प्रेरित करने के लिए अपनी शारीरिक मुद्रा पर ध्यान दें

    समुद्री जीव वाकई गौर करने लायक होते हैं। इनका नर्वस सिस्टम अपेक्षाकृत सरल होता है और इनके मस्तिष्क की जादुई कोशिकाएं यानी न्यूरॉन्स बड़े आकार के होते हैं, जिनका निरीक्षण करना काफी आसान होता है। यही कारण सर्किट का सही- सही नक्शा बनाने में सफलता हासिल की है। इंसान और केकड़ों में हमारी उम्मीद से अधिक समानताएं होती हैं (खासकर तब, जब आप केकड़ों की तरह चिड़चिड़ा महसूस करते हैं।)

    जॉर्डन यी पीटरसन है कि वैज्ञानिकों ने मनोविशेषज्ञ व लेखक केकड़ों के न्यूरल

    अगर दो केकड़े एक ही समय में समुद्र तल के एक ही क्षेत्र को अपने अधिकार में ले लें और दोनों ही उस अधिकार क्षेत्र में रहना चाहते हों, तब क्या ? दोनों में युद्ध होगा। एक पराजित केकड़े के मस्तिष्क की रासायनिक गतिविधियां निश्चित ही एक विजयी केकड़े से बिलकुल अलग होगी। इसकी झलक उसकी शारीरिक मुद्रा में साफ देखी जा सकती है। आत्मविश्वास या डर उसके शरीर में मौजूद सेरोटोनिन व ऑक्टोपमाइन नामक दो रसायनों पर निर्भर होता है। जब कोई केकड़ा जीत हासिल करता

    है तो उसके शरीर में सेरोटोनिन की मात्रा ऑक्टोपमाइन की मात्रा से ज्यादा हो जाती है।

    परिस्थितियां कैसी भी हों, आप कंधे ताने रखें। कंधे तानकर सीधे खड़े होने का अर्थ है, जीवन की कठिन जिम्मेदारी को रोमांच के साथ स्वीकार करना। इसका अर्थ है, अपनी अव्यवस्थित क्षमताओं को एक जीवन जीने योग्य संसार की वास्तविकताओं में रूपांतरित करना। इसका अर्थ है आत्म चेतन अतिसंवेदनशीलता और कमजोरी के बोझ को स्वेच्छा से स्वीकार करना और बचपन के अचेतन स्वर्ग के अंत को स्वीकार करना।

    स्वयं को प्रेरित करने के लिए आप विजेता केकड़ों पर विचार कर सकते हैं, जिनका अस्तित्व और व्यावहारिक प्रज्ञा 35 करोड़ साल पुरानी है। तो आगे से आप अपने कंधे तान कर सीधे खड़े होंगे। अपनी शारीरिक मुद्रा पर ध्यान दें। कंधे झुककर चलना और पराजित दिखना बंद करें। अपने मन की बात स्पष्ट शब्दों में कहें। अपनी इच्छाओं को महत्व दें, मानों उन्हें पूरा करना आपका हक हो, कम से कम उतना हक, जितना हर किसी को होता है। गरदन सीधी करके चलें और अपनी नजरों को बिलकुल स्पष्ट रखें। अपने शरीर के तंत्रिका पथों में सेरोटोनिन के मुक्त प्रवाह को प्रोत्साहित करें, जो अपना शांतिपूर्ण प्रभाव दिखाने के लिए बेताय है।

  • साइंस ऑफ इफेक्टिव कम्युनिकेशन

    शब्द नहीं लहजा ही मूलभूत संदेश देता है।

    समस्त मानवीय भाव लगने से व्यक्त होते हैं। शब्द नहीं बल्कि टोन ही मूलभूत संदेश होती है। टोन को अवसर नजरअंदाज कर दिया जाता। है। बच्चों को यह तो सिखाया जाता है कि शब्दों को सही बोलना चाहिए परंतु उन्हें यह नहीं सिखाया जाता कि शब्दों को उत्साहपूर्वक सही टोन में बोलना चाहिए।

    विंक एंड जो रिच

    बचत और मेहनत से मिलेंगे कमाई मौके

    अपनी कमाई के दायरे में रहकर जीना और बचत के लिए अपने आपको अनुशासित करने की आपकी काबिलियत ही आपको जिंदगी में कामयाबी दिलाता है। अगर आप मोहनत और बचत के जरिए पूंजी एकत्रित करेंगे तो ये आपकी जिंदगी में और ज्यादा कमाने और ज्यादा बचाने के मौके लाएगी।

    टूल्स ऑफ टायटन्स

    जो पद चाहते हैं पोषाक उसके अनुरूप ही पहनिए शोध बताते हैं कि अच्छे कपड़े पहनेंगे तो लोग आपको सुनेंगे। आप कैसे दिखते हैं और कैसा काम करते हैं के बीच तालमेल होने से आपको सफलता मिल सकती है। पोषाक पहले 90 सेकंड में बड़ी भूमिका

    निभाती है। पोषाक का इस्तेमाल अपने व्यक्तित्व को स्टाइल के साथ पेश करने के लिए करना चाहिए।

    सफलता चाहते हैं, तो निराशा हावी ना हो

    फर्क इस बात से नहीं पड़ता कि आप कितनी जोर से गिरते है, क इससे पड़ता है कि कितनी जल्दी और ताकत से उठ खड़े होते हैं। आपकी जिंदगी और काम में कामयाबी का पूर्व संकेत इससे मिलता है कि आप निराशा का कैसे सामना करते हैं। क्या उसे हावी होने देगे या दूसरों पर आरोप लगाकर गुरुवारी है।

  • जागरूक रहकर दूसरों के प्रभाव में आने से बच सकते हैं

    चाहे आनंद हो या गुस्सा, हम ऐसे हैं कि दूसरों की भावनाओं से प्रभावित हुए बिना रह ही नहीं पाते। इसे इमोशनल कंटेजियन यानी भावनात्मक संक्रमण कह सकते हैं। पर अगर थोड़ी-सी जागरूकता रखी जाए तो दूसरों के नकारात्मक विचारों से खुद को बचाकर रख सकते हैं।

    अमेरिकी पत्रकार एरियल लीव ने अपने जीवन की घटनाओं पर एक किताब लिखी है। उसमें वह बताती हैं कि 1970 के दशक में वह मैनहट्टन में एक अपार्टमेंट में अपनी चिड़चिड़ी मां के साथ रहती थीं। वहां लोग पार्टी करते और वह उन पर चिल्लाती रहतीं। उनका मूड बहुत जल्दी-जल्दी बदलता और वह हमेशा सतर्क रहतीं। ऐसे में वह रिलैक्स ही नहीं कर पाती लीव लिखती हैं कि इसका परिणाम ये हुआ कि वयस्क होने के बाद वह दूसरों की मनोदशा और उनकी ऊर्जा से बहुत ज्यादा प्रभावित होने लगी। इसका मुख्य कारण लीव की उतार- चढ़ाव भरी परवरिश रही।

    लेखिका इलेन हैटफील्ड इमोशनल कंटेजियन को दूसरों के हावभाव, आवाज, हरकते आदि को देखकर अपना व्यवहार बदल देने के रूप

    में परिभाषित करती हैं। कई अध्ययन बताते हैं कि तीव्र नकारात्मक भावनाएं अधिक सशक्त रूप से अभिव्यक्त होती है, वे अधिक संक्रामक होती हैं। बार-बार नकारात्मक रूप से प्रभावित होने के कारण हम इसकी वजह नहीं देख पाते। इसके बजाय सोचते हैं कि हम बुरे हालातों में हैं।

    इससे बचने के लिए क्या करें ? सबसे पहले अपने दूसरों के बुरे मूड के प्रति बहुत ज्यादा संवेदनशील न हों। पर्याप्त नींद लें, अच्छा खाएं, व्यायाम करें और जीवन में उद्देश्य लाएं। आपको अपना मूड खराब करने का पूरा अधिकार है, लेकिन दूसरों का मूड बिगाड़ने का नहीं, उनके बारे में भी सोचें और किसी से बात करते समय अपना मूड सामान्य बनाए रखें। अपने जीवनसाथी से अपने बारे में फीडमैक लेते रहे।


  • खोए हुए आत्मसम्मान को फिर से वापस पाने के चंद तरीके

    अपने उपन्यास 'द ब्लूएस्ट आई में, टोनी मोरिसन ने एक लड़की के बारे में लिखा था जो अपने रूप से खुश नहीं थी। उसे नीली आँखें चाहिए थीं पर उसकी आंखें काली थीं। वह चाहती थी कि उसके पास एक सुखद परिवार होता, श्रीश्री रविशंकर लेकिन उसका परिवार आध्यात्मिक गुरु खुश नहीं था। उसका कमजोर आत्मसम्मान उसके परिवार के लोगों में तालमेल के अभाव के कारण केवल और कमजोर ही हुआ।

    हममें से कुछ के घर पर, स्कूल में साथियों और परिवार के बीच इसी प्रकार के नाखुश पल रहे होंगे। हमने झूठ पर विश्वास किया कि हम उतने अच्छे नहीं हैं। हो सकता है हममें से कुछ लोगों की शुरुआत अच्छी रही हो परंतु बाद में असफलताओं ने हमारे आत्मसम्मान को क्षतिग्रस्त कर दिया हो। अभी भी, हममें से कुछ के जीवन में सब कुछ हमारे पक्ष में जा रहा होगा लेकिन हमारा निरंतर अपने आप से नकारात्मक बात करना हानिकारक हो सकता है। खैर कारण जो भी हो, पर कुछ उपायों से आत्मसम्मान में कमी

    दूर की जा सकती है। पहला, जितना आप सोचते हैं कि आप

    प्रतिकूल परिस्थितियों और लोगों के शिकार हुए हैं, खुद को उतना ही कमजोर महसूस करते हैं। अपने अतीत को सपने जैसे देखें और भविष्य का सामना मजबूत और निडर होकर करें।

    दूसरा अपने मन का बोझ हटाएं। जिन पलों मैं आपने खुद को कम महसूस किया ऐसे असफलता के उदाहरण आपको हानिकारक भावनात्मक बोझ देते हैं। आत्मविश्वास के पोषण के लिए उन्हें छोड़ना ही बेहतर है। इसके लिए ध्यान का सहारा लें। ध्यान करने से आत्म सम्मान को बढ़ाना एक वास्तविकता है। जब आप अपने आप साथ सहज होते हैं, आपके आत्मविश्वास में वृद्धि होती है। तीसरा है नकारात्मक सोच से दूर रहें। अपनी कमियों पर असंतोष के बजाय उन्हें सुधारने का संकल्प लें। आंतरिक नकारात्मक संवाद में लिप्त होने के बजाय, उनका निरीक्षण त तक करें, जब तक वे विलुप्त न हो जाएं।

    चौथा है दूसरों से प्रतिस्पर्धा की प्रवृत्ति, इससे बचें। ये एक ऐसी प्रवृत्ति है जो न तो हमें उपयोगी बनाती है और न ही खुश रहने देती है। जबकि अगर आप खुद के साथ मुकाबला करते हैं, तो आप न केवल और अधिक उपयोगी होते हैं परंतु मजबूत आत्म सम्मान के स्वामी होते हैं।


  • क्या अपने मूड को सहज रूप से नियंत्रित किया जा सकता है?

    'मूड खराब है आपको अपने आसपास किसी न किसी से ये सुनने मिल ही जाता होगा। आखिर में गृह है? जीवन में लोगों का मूड भी होगा। ऐसी स्थिति में करते होंगे?

    दरअसल हमारा मूड कला (आटे) की तरह होता है जब आप उसे आंखों से देखते या महसूस करते हैं, तभी उसके बारे में पता चल पाता है, पहले से नहीं विज्ञान भी हमारे मूड के बारे में कुछ ठीकठाक नहीं बना पाता कि यह कैसे काम करता है। मूड भावनाओं से जुड़ी हुई हमारे दिमाग की अवस्था है, लेकिन अपेक्षाकृत रूप से ज्यादा स्थायी ज्यादा स्थिर भावनाओं की तरह ही मूड भी दिमाग के एमिग्डला वाले हिस्से में पैदा होता है, जहाँ विचारों को भावनात्मक रूप से समझा जाता है। मूड को बॉडी बलॉक बहुत गहराई से प्रभावित करती है, सोने-उठने में गड़बड़ी से भी यह खराब हो जाता है। इसका असर सेहत पर भी पड़ता है तो सेहत भी मूड पर असर डालती है। मेटाबॉलिज्म भी मूड से जुड़ा होता है, यह शारीरिक-मानसिक ऊर्जा पर असर डालता है।

    कई लोगों को लगता है कि मूड औसतन रूप से हमारी भावनाओं का ही बेच है। पर विज्ञान के हिसाब से मूड बिल्कुल अलग है। इस बात के प्रमाण है कि कुछ लोग आमतौर पर यह चुनकर कि आगे किस गतिविधि में शामिल होना है, अपने मूढ

    को सहया रूप से नियंत्रित करते हैं। लो फील करते हैं, तो खुद को उन चीजों में शामिल कर लेते हैं, जिससे उन्हें खु मिलती है, जैसे फिल्म देखना, घूमना आदि। और जब मूड ठीक हो जाता है, जोखि भरा काम करते हैं।

    ब्रिटिश शोधकर्ताओं ने पाया है ज्यादा डिप्रेशन के मरीजों में मूड को करने वाली प्रक्रिया होता है। अभी तक मूड बदलने के लिए परंपरागत उपाय ही रही है, जहां दवाएं दिमाग की केमिस्ट्री पर असर डालकर मूड सुधारती है। लेकिन लोग अब इस तरह दिमाग पर असर बना मूड बदलने के उपायों को और ज्यादा ध्यान दे रहे हैं। शोध अध्ययन कहते हैं। खानपान मूड को बहुत ज्यादा प्रभावित कर है। सकारात्मक सोच के साथ पर ध्यान से मूड ठीक रखा जाता है।


  • × टाइम मैनेजमेंट समय का धन की तरह ही निवेश करें

    आपकी जिंदगी का स्तर इस बात पर निर्भर करता है कि आप अपने समय का इस्तेमाल कैसे करते हैं। आपकी जिंदगी का हर हिस्सा आपके द्वारा किए गए समय के इस्तेमाल के परिणाम को दर्शाता है। समय ही धन है। या तो इसे खर्च किया जा सकता है या निवेश किया जा सकता है। निवेश के लिए समय बचाएं।

    × द हाउ ऑफ हैपीनेस

    आपकी मुस्कान क्यों महत्त्वपूर्ण है

    आपकी मुस्कुराहट आपकी गुडविल है। कोई इतना अमीर नहीं कि इसके बिना जी सके और कोई इतना गरीब नहीं कि इसका लाभ ना उठा सके। यह थके हुओं के लिए आराम है, निराश लोगों के लिए आशा की किरण है। इसका तब तक कोई मोल नहीं जब तक इसे दूसरों को ना दिया जाए। मुस्कान बाटते रहिए।

    × यू कैन हील यॉर लाइफ माफ करने से मन को सुकून मिलता है।

    माफ करना बहुत ही स्वार्थी काम है। इसका वास्ता आपके अपने मानसिक संतुलन, मन की शांति से है। किसी के प्रति मन में देश ना रखें। जब आप ऐसा करते हैं। तब वो जीवन का आनंद ले रहे होते हैं। माफ करना ज्यादा आसान है। जब भी उस व्यक्ति के बारे में सोचें तो अच्छा ही सोचें। इससे नफरत पैदा नहीं होगी।

    × द मैजिक ऑफ थिंकिंग बिग खुद को पसंद करेंगे तो निरंतर आगे बढ़ेंगे

    खुद को जितना ज्यादा पसंद करेंगे, अपने लिए उतने ही ऊंचे मापदंड रखेंगे, उतने ही बड़े लक्ष्य निर्धारित करेंगे और उन्हें हासिल करने के लिए ज्यादा प्रयास करेंगे। खुद के बारे में ऊंची सोच रखने वालों को रोकना नामुमकिन होता. है। दूसरों की नजरों में भी वो ऊपर उठ जाते हैं, जो अपने बारे में अच्छी राय रखते हैं।

  • खुद की आलोचना न करें, ये सुधार में बाधक है

    उस बात पर हमेशा गौर करें जिसके लिए आप खुद को सबसे ज्यादा दोष देते हैं। फिर चाहे वह देरी हो, ओवर ईंटिंग हो या कुछ और। क्षण 'भर के लिए उस भाषा पर विचार करें, जिसका उपयोग आप उस समय खुद को दोष देने के लिए करते हैं। क्या आप खुद को बहुत बुरा-भला कहते हैं। आलसी, बेवकूफ जैसे शब्दों का प्रयोग करते हैं तो इसे बंद कर दीजिए। विशेषज्ञ खुद के बारे में इस तरह के शब्दों का प्रयोग करने या खुद के लिए जजमेंट करने से मना करते हैं। इसका मुख्य कारण यह है कि इस तरह की आलोचना आपको समस्याओं के वास्तविक कारणों तक नहीं पहुंचने देती, जिससे आप समस्या के समाधान तक नहीं पहुंच पाते।

    मनोवैज्ञानिक आमतौर पर जोर देते हैं कि विचारों, भावनाओं और व्यवहार के लिए एक उचित स्पष्टीकरण होता है। इसे 'सहानुभूति' कहा जाता है। इसका उपयोग लोगों में बदलाव लाने के लिए किया जाता है। दरअसल जब हम जजमेंट करते हैं तो हम मानसिक रूप से दुनिया

    को 'अच्छे' और 'बुरे' की श्रेणी में विभाजित करते हैं। हम जटिल चीजों को 'बेवकूफ', 'बदसूरत', 'स्मार्ट', या फिर 'पागल' जैसे आसान लेबल देकर शॉर्टकट बनाते हैं। बुद्धिमानी के साथ मानसिक शॉर्टकट बनाने की यह क्षमता जीवित रहने के लिए महत्वपूर्ण भी है। क्योंकि दुनिया में इतनी अधिक सूचनाएं हैं कि सब कुछ विस्तार से नहीं जाना जा सकता।

    तो क्या करें: खुद की आलोचना करते समय रुकें और पूछें, 'इससे मेरा क्या मतलब है?' बुरी आदतों में तर्क खोजें। दरअसल आपका दिमाग बता रहा होता है कि गतिविधि अप्रिय होने वाली है। अप्रिय क्या हो सकता है इसके बारे में विचार करें।

  • मन में दुख की स्क्रिप्ट न लिखें, अभिव्यक्त कर दें दें

    जब भी कोई आपदा या विपत्ति आ पड़े या कुछ बहुत बुरा हो जाए, जैसे बीमारी, आदि तब आश्वस्त रहिए कि इसका दूसरा पहलू भी है, कि आप एक अविश्वसनीय एकहार्ट टॉल्ल चीज से बस विख्यात लेखक एक कदम दूर हैं। और वह है उस पीड़ा व दुख-तकलीफ रूपी घटिया धातु को सोने जैसी कीमती धातु में बदलने का समय और एक कदम को समर्पण कहते हैं।

    इसका मतलब यह नहीं है कि आप ऐसी स्थिति में सुखी हो जाएंगे, खुश हो जाएंगे। लेकिन ऐसा अवश्य है कि आपका भय और दुख, शांति में, सुकून में बदल जाएगा। यह ईश्वरीय शांति है जो किसी भी बोध शक्ति से पार और परे है। उसकी तुलना में सुख तो एक बहुत ही उथली चीज है। जो कुछ बाहर है अगर उसे आप स्वीकार नहीं कर सकते हैं तो जो भीतर है उसे स्वीकार कीजिए।

    इसका अर्थ है दुःख का प्रतिरोध न करें। उसे वहीं रहने दें। वह दुख जिस भी रूप में हो- शोक, विषाद, हताशा, निराशा, भय, चिंता, अकेलापन उसके प्रति समर्पण करें। मानसिक रूप से कोई ठप्पा लगाए बिना उसे साक्षी की तरह देखें। तब देखिए कि समर्पण का चमत्कार उस गहरे दुख को किस तरह एक गहरी शांति में बदल देता है। जब बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं होता है तो भी उससे पार पाने का कोई तो रास्ता होता ही है। इसलिए दुख-दर्द से बच कर मत भागिए। उसका सामना कीजिए। उसे महसूस कीजिए- पर उसके बारे में सोचिए मत। हो सके तो उसे अभिव्यक्त कीजिए, लेकिन उसके बारे में अपने मन में कोई स्क्रिप्ट न रचते रहिए। उस एहसास को पूरी तवज्जो दीजिए, न कि उस व्यक्ति, उस घटना या उस स्थिति को जो कि उस एहसास के पैदा होने का कारण लग रहा हो । मुश्किलों से अच्छी तरह लडने का यही तरीका है ।


  • दिन की शुरुआत आपका आगे का दिन तय करती है

    जागने के बाद के

    पहले 30 मिनट को मैं प्लैटिनम-30 बुलाता हूँ। क्योंकि वे वास्तव में आपके दिन के सबसे महत्वपूर्ण क्षण होते हैं और आगे आने वाले पलों को श्रेष्ठता पर अत्यंत महन प्रभाव डालते हैं। अगर आपके पास यह करने का विवेक और ज्ञान है तो इस प्रमुख समय में आप सिर्फ पवित्र विचारों को मन में लाएं और सर्वोत्तम कार्य करें। आप महसूस करेंगे कि आपका दिन एक शानदार शुरुआत के साथ अनेक सर्वश्रेष्ठ दिशाओं को लेकर आएगा। जिस तरह से आप अपने दिन की शुरुआत करते हैं वह यह निर्धारित करता है कि आपका दिन कैसा बीतेगा।

    मैं अपने दो छोटे बच्चों को सनसनीखेज आइमैक्स फिल्म 'एवरेस्ट' दिखाने ले गया। सांस रोक देने वाले दृश्यों के अलावा एक और बात जो मेरे ध्यान में रह गई वह यह है कि पर्वत की ऊंचाई तक पहुंचने के लिए एक अच्छे येस कैप की आवश्यकता होती है। अगर धरातल के कैंप में विराम, विश्रांत और शरण न मिलती तो उनका चोटी तक पहुंचना असंभव था। जब वे दूसरे कैप पहुंचे फिर ये कुछ हफ्तों के लिए अपनीत करते हैं जो मेरे लिए मात लाने के लिए बेस कैंप में वापस आ गए। जैसे ही वे तीसरे कैंप पर पहुंचे वे जल्द ही चौधे कैंप पर पहुंचने की तैयारी करने बेस कैंप में वापस आ गए। और जब वे पांच कैंप पर पहुंचे तब वे फिर से पर्वत के नीचे अपने शरणालय में आ गए, जिससे वे अपने आपको पर्वत के शिखर तक पहुंचने के लिए तैयार कर सके। उसी तरह हम सबको व्यक्तिगत ऊंचाइयों तक पहुंचने के लिए और अपनी दैनिक चुनौतियों पर विजय प्राप्त करने के लिए इस 'प्लैटिनक 30' के समय में अपने बेस कैंप जाने की कोशिश करनी चाहिए। हमें वापस उस जगह पर जाने की आवश्यकता होती है जहां हम फिर से अपने जीवन के ध्येय के साथ संबंधित हो जाते हैं। अपने स्वयं के जीवन में मैंने एक

    बहुत ही असरदायक प्रातःकालीन पद्धति का विकास किया है जो मेरे दिन की एक शांत और प्रसन्नता से भरी हुई शुरुआत करती है। मैं अपने निजी शरणालय में बैठकर बिना किसी विघ्न के उन नवीनीकरण के उपायों का अभ्यास करता हूँ। इसके बाद में पंद्रह मिनट का समय मौन मनन में व्यतीत करता हूँ। अपने जीवन की सबसे अच्छी बातों पर ध्यान केंद्रित करके यह सोचता हूँ कि अपने वाला दिन क्या लेकर आने वाला है। इसके बारे में ज्ञानवर्धक साहित्य से कोई पुस्तक उठाता हूँ। इन पुस्तकों के पाठ मुझे उन चीजों पर में जरूरी है। अपने दिन की अच्छी शुरुआत कीजिए। आप जल्द ही एक बदले हुए व्यक्तित्व के स्वामी होंगे।




  • आपकी स्वाधीनता से किसी का रत्तीभर बुरा न हो

    उन्नति के लिए आजादी सहायक है। मनुष्य के लिए जिस प्रकार सोचने और सोचकर प्रकट करने की स्वाधीनता होनी आवश्यक है उसी तरह उसे खाने पीने, पहनने, ओढने लेने-देने और विवाह आदि कर्मों की आजादी होनी चाहिए। उसकी स्वाधीनता से किसी का रत्तीभर बुरा न हो।

    सब बातों की स्वाधीनता के मायने हैं मुक्ति की ओर बढ़ना और यही पुरुषार्थ है। उस काम में सहायता करना परम पुरुषार्थ है जिससे और लोग शारीरिक, मानसिक और अध्यात्मिक स्वाधीनता की ओर बढ़ें। इस स्वाधीनता की स्फूर्ति में जिन सामाजिक नियमों के द्वारा बाधा पड़ती है वे अकल्याणकर हैं, बुरे हैं। इसलिए ऐसे नियमों को शीघ्र नष्ट करने का प्रयत्न करना चाहिए। व्यक्ति को बलवान बनने की कोशिश करनी चाहिए। कमजोर दिमाग कुछ भी नहीं कर सकता। सैकड़ों प्रलोभनों पर विजय प्राप्त करके, कमजोरियों को दबाकर, यदि तुम सत्य की सेवा कर सको तो सचमुच तमुमे एक ऐसा दिव्य तेज भर जाएगा कि उसके सामने,

    तुम्हें जो कुछ असत्य जंचता है उसका उल्लेख करने की हिम्मत औरों को नहीं होगी। जिसकी सहायता से इच्छाशक्ति का वेग

    और स्फूर्ति अपने वश में हो जाए और जो मनोरथ सफल हो सके वहीं शिक्षा है। मस्तिष्क में अनेक तरह का ज्ञान भर लेना, उससे कुछ काम न लेना और जन्म भर वाद विवाद करते रहने का नाम शिक्षा नहीं है। अच्छे आदर्श और अच्छे भावों को काम में लाकर लाभ उठाना चाहिए, जिससे वास्तविक मनुष्यत्व, चरित्र और जीवन बन सके। कुछ इम्तिहान पास करना अथवा धुंआधार व्याख्यान देने की शक्ति प्राप्त कर लेना शिक्षित हो जाना नहीं कहलाता। जिस विद्या के बल से जनता को जीवन संग्राम के लिए समर्थ नहीं किया जा सकता, जिसकी सहायता से मनुष्य का चरित्र बल परोपकार में तत्पर और सिंह का सा साहसी नहीं किया जा सकता, उसे शिक्षा नहीं कहा जा सकता। शिक्षा तो वही है जो मनुष्य को अपने पैरों पर खड़ा होना सिखाती है। भगवान ने कृष्णावतार में कहा है कि सभी प्रकार के दुखों कार कारण अविद्या है। निष्काम करने से चित्त शुद्ध होता है। जबकि कर्म वही है जिसके द्वारा आत्मभाव का विकास हो, और जिसके द्वारा अनात्मभाव का विकास हो वह अकर्म है।




  • द आर्ट ऑफ थिंकिंग क्लियर्ली

    विचारों की शक्ति को

    अहमियत देनी चाहिए। चिंता करने और विचार करने में बहुत ज्यादा अंतर होता है। लेकिन बहुत कम लोगों को ही इन दोनों में फर्क समझ आता है। चिंता करने से काम तो होता है, लेकिन कामयाबी हासिल नहीं होती। वहीं सोचने से हम आगे बढ़ते हैं और नए आयाम खोजते हैं। विचारों की शक्ति का कोई दायरा नहीं, यह तो असीमित है।

    मैनेजिंग वनसेल्फ

    अपने साथ होने वाली हर बात की जिम्मेदारी लें

    आप तभी तक खुद के बारे में अच्छा सोचते हैं जब तक खुद के नियंत्रण में होते हैं। अगर किसी दूसरे को जिम्मेदार बनाते हैं तो उन्हें अपना नियंत्रण सौंपते हैं। आप अब भी खुद के लिए जिम्मेदार हैं, लेकिन नियंत्रण दूसरे को सौंपने से मानसिक शांति खो देते हैं। अपने साथ होने वाली हर चीज का श्रेय और दोष खुद लें।

    रोड टू स्वसेस

    सफल होने के लिए अफलता की जरूरत है

    जब असफलता का डर बढ़ जाता है। तो यह आपकी सफलता और खुशी की राह में बाधा बन सकता है। सफल होना चाहते हैं तो अपनी असफलता की दर दोगुनी कर दें। सफलता, असफलता के दूसरे सिरे पर मौजूद होती है। असफलता, सबक सीखने का एक तरीका है। इसकी जरूरत सफल होने के लिए पड़ती है।

    मेहनत और त्याग हासिल होगी सफलता

    लोग जीवन में सफल होना चाहते हैं लेकिन उसके लिए मेहनत और त्याग नहीं करना चाहते। बहुत आसानी से घर मान लेते हैं। सफलता का रास्ता असफलता से होकर ही निकलता है। जो हवा के रुख की परवाह न करते हुए विरुद्ध जाकर भी काम करने के लिए तैयार रहते हैं, वही लोग सफलता हासिल कर पाते हैं।

  • ( कभी भी किसी को भी Criticize ना करे )

    लेखक लिखते है कि मानो आज के वक्त हर कोई तैयार बैठा है किसी ना किसी को Criticize करने के लिए कयोंकि शायद हमारी एक - दूसरे को Criticize करने कि आदत सी बन गई है पर यह हमारे लिए खतरनाक साबित हो सकती है अगर आप मे यह आदत है तो आप लोगो को उनके हमेशा उनके दुश्मन कि तरहा नजर आने लगते हो ।
    लेखक कहते है कि सफल लोग कभी भी किसी को Criticize नही करते है और यदि उनको किसी को Criticize करना भी पडे तो वह इसके लिए सेन्डविच मैथड का उपयोग करते है ।
    इस नियम में आप सैंडविच कि तरह लोगो को Criticize करें , जिस प्रकार सैंडविच में ऊपर और नीचे कि तरफ़ Bread लगी होती है और बीच में cheese लगी होती है उसी तरह आप भी जब किसी कि आलोचना करें तो ऊपर नीचे प्रशंसा कि Bread लगा लें और बीच में आलोचना की cheese लगा दे ताकि सामने वाले को बूरा भी ना लगे और वह आप कि बात को भी समझ सके ।



  • अमेरिकी लेखिका ग्रेचेन रुविन हैप्पीनेस प्रोजेक्ट पर काम कर रही हैं। रुबिन 'सेल्फ इनसाइट... नाम की किताब का हवाला देते हुए कहती हैं कि लोग किसी भी बात पर बहस कर सकते हैं। अगर उन्हें कहा जाए कि 'ए' सही है, तो उसके समर्थन में तर्क दे सकते हैं। अगर कहा जाए कि 'ए' का विरोधी सही है, तो वे उसी सफाई से उस पर भी बहस करने बैठ जाएंगे।

    हैप्पीनेस प्रोजेक्ट के शोध में सामने आया कि लोग सुबूतों पर जोर देते हैं और ये परिकल्पना, उसके बिल्कुल उलट है कि लोग जानकारियों के ऊपर रायशुमारी को प्राथमिकता देते हैं। उदाहरण के लिए अगर किसी से पूछें कि क्या वह कभी बाहर घूमने वाला व्यक्ति रहा है तो वह बैठकर उस समय की कल्पना करने लगेगा, जब वह मिलनसार हुआ करता था। अगर उसी व्यक्ति से पूछा जाए कि क्या वो शर्मीला था, तो वह उसके बारे में भी सोचने लगेगा।

    आप अपनी जिंदगी में इस थ्योरी को लागू कर सकते हैं। जैसे जब ख्याल आए कि जीवनसाथी में बिल्कुल दिमाग नहीं है, तब दिमाग

    भी उसके समर्थन में तर्क देने लगता है। आप बस करें इतना कि उसी समय उल्टा सोचना शुरू कर दें। जैसा मेरा जीवनसाथी बुद्धिमान है। तब दिमाग में इसके समर्थन में विचार आने लगेंगे। इससे आप वाकई में अपनी राय में बदलाव महसूस कर सकते हैं। ये थ्योरी बताती है कि कैसे खुशमिजाज लोग खुशनुमा माहौल में रहते हैं या उसे बना देते हैं।

    हमें अक्सर लोगों से वैसी प्रतिक्रिया मिलती है, जो हमारे दिमाग में पहले से बनी उनकी छवि को और मजबूत करती है। लेकिन ऐसा क्यों है? अगर आप हर वक्त बुरा बताँव करेंगे तो मुमकिन है कि लोग आपकी मदद न करें, जिसका परिणाम ये होगा कि आपका रवैया और बुरा होता जाएगा। इसके उलट अगर आप माहौल खुशनुमा बनाएंगे तो लोग भी मदद करने को तैयार रहेंगे।

  • जी हाँ , आप अगर इस अवस्था मे खडे होते है तो सामने वाले को हमेशा यह लगेगा कि आप बहुत ज्यादा आत्मविश्वासी और एक मजबूत व्यक्ति हैं और इसके साथ - साथ आप भी अपने आप को आत्मविश्वास से भरा हुआ महसूस कर पायेंगे अगर आप इस अवस्था मे खडे नही होगे तो लोग आप को हमेशा ही एक हारे हुए वयक्ति के रूप देखेंगे तो आज आप अपने खडे होने का अदाज थोड़ा बदल दीजिए ।

  • आपके आनंद की जिम्मेदारी लेने वाला कौन है? घट रहा है। इस तरह जब सब कुछ आपके

    यदि आपको आनंदपूर्वक रहना है तो उसकी जिम्मेदारी लेने वाला कौन है? आपके पिता, अंदर ही घटित हो रहा है, केवल आपको पत्नि, संतान या मित्र ? आप जिन चीजों की कामना करते हैं, उन्हें पाने का मार्ग क्या है? इन बातों पर एक-एक करके विचार करें। है। पर्वत शिखर पर तैर रहे बादल चोटियों से टकरा रहे हैं। इस पृष्ठभूमि में सूरज पीले रंग में भीग कर डूब रहा है। आप इस रमणीय दृश्य को देख रहे हैं। बताइए, दृश्य कहां है? उस पहाड़ पर ? आसमान में? इत्मीनान से घटित हो रहा है? आपकी आंखों के पर्दे पर है? आपके भीतर ही न ?

    सद्गुरु, संस्थापक, शाम की सुरम्य वेला ईसा फाउंडेशन

    इच्छा साकार होने से क्यों इनकार कर रही है। प्रसन्न रहने के लिए आप सौ-सौ शर्ते लगा रहे हैं। पत्नी ऐसी होनी चाहिए। मेरा बच्चा वैसा होना चाहिए। इस प्रकार की सैकड़ों शर्ते लगाते जाएंगे तो आपका आनंद किसी दूसरे के नियंत्रण में चला जाएगा। अगर आप आनंद में रहेंगे और प्रेमपूर्वक बरतेंगे तो अपने आसपास के लोगों को प्रसन्न रख सकेंगे। यदि आप दुख में, मायूसी में डूबे रहेंगे तो अपने इर्द-गिर्द रहने वालों की खुशियों को भी बिगाड़ देंगे।

    ध्यान दीजिए, आपकी इच्छा दरअसल कहाँ अपनी जड़ जमाए हुए हैं?

    आपने सोचा था, शादी हो जाए तो खुशी मिलेगी। शादी हुई। फिर ख्याल आया बच्चे सोचकर बताइए। इस दृश्य का अनुभव कहां होने पर ही जीवन पूर्ण होगा, खुशी उसी में है। खुशी से जीना है, यही लालसा तो आपको उसका बिंब गिरता है और दिमाग को सूचना सभी इच्छाओं के मूल में छिपी हुई है। आपने भेजता है। आपके अनुभव में अब पहाड़ कहां जो मांगा, वह तो मिल गया। लेकिन संतोष के बिना आगे.... और आगे... वो इच्छा एक से दूसरी चीज की ओर लपकती जा रही है। ऐस क्यों? गलती कहां हुई? क्या यह आपकी त्रुटि है या इच्छा को ?




  • (21) सबसे बेहतर नशा प्रेम का है ।

    (22) समाज के निमय दौलत पर निर्भर करते है ।

    (23) " स्त्री " भगवान है ।

    (24) आपका जीवन एक फिल्म की तरह होता है जिसमें आप अकेले ही अलग - अलग तरह के किरदार निभाते चले जाते है ।

    (25) भूतकाल ( Past ) ही भविष्य काल ( Future ) की भविष्यवाणी करता है ।

    (26) मेरा मानना है " एक Married couple को तब तक बच्चे पैदा करने का विचार नहीं करना चाहिए , जबतक वह उसे एक बेहतर जीवन देने कि परिस्थिति ना हो "

    (27) भीड़ बच्चों की नही , संस्कारों की होनी चाहिए ।

    (28) आपके साथ अच्छा हो या बुरा अगर आप को ऐसा होने का कारण जानना है तो अपने भूतकाल को टटोलिये ।

    (29) विकास कभी भी " पूर्ण " नहीं हो सकता , यह हमेशा विकासशील ही रहेगा ।

    (30) इतिहास अच्छा हो या बुरा उस पर सवाल उठाने की जगह , उससे सीखा जाना चाहिए ।

    (31) सफलता की कोई तय परिभाषा नही है यह तो समय और जगह के हिसाब से बदलती रहती है ।

    (32) मेरे अनुसार इंसान की बहुत सारी गलतियों मे से एक बड़ी गलती " धर्म " है ।

    (33) मेरा मानना है
    " जो व्यक्ति दूरगामी नहीं होता है वह अपने आप को केवल धोखा दे रहा है कयोंकि आपके जीवन का हर दिन एक दांव की तरह है जो खुद दूरगामी परिणामों पर निर्भर है "

    (34) राजनीति मे धर्म का कोई काम नहीं और धर्म मे राजनीति का...

    (35) जब आपका मन किसी के लिये लिए डरना शुरू कर दे , तो यह मान लिया जाना चाहिए की आपको उससे प्रेम हो गया है ।

    (36) अभी भी बहुत कुछ खोजा जाना बाकी है ।

    (37) मेरा मानना है...
    " हर व्यक्ति सबसे बड़ी वह सबसे पहली प्राथमिकता , एक अच्छा इंसान बनने की होनी चाहिए "

    (38) यह दुनिया कितनी भी बदल कयों न जाये पर प्रेम की प्ररीक्षा हर युग मे होगी ।

    (39) " अधिकता " पतन का कारण है ।

    (40) आप माने या ना माने पर आपकी सफलता आपके सफर के महत्व को कम कर देती है ।

    (41) बुद्धि के विकास का एक ही तरीका है - " पढ़ना "

    (42) " मैंने इसांन की ऐसी लाचारी कभी ना देखी
    जो चीज सबसे ज्यादा थी
    उसके लिये घुट - घुट कर मरता रहा "

    (43) मेरा मानना है...
    " इसांन कभी भी स्वतंत्र नही रह सकता "

    (44) जहाँ डर वहाँ अंधविश्वास है और जहाँ अंधविश्वास वहाँ तो निश्चित ही डर होगा ।

    (45) मेरे अनुसार " जब कोई इंसान अपने से अधिक सफल इंसान को देखता है तो उसका दुःख बढता है और जब वह अपने से कम सफल या असफल इंसान को देखता है तो वह खुश होता है पर जो इंसान इन दोनों अवस्था मे स्थिर होता है वह मन से संत है "

    (46) जहाँ ज्ञान है , वहाँ स्थिरता है ।

    (47) " लिखा गलत हो सकता है पर मिट नहीं सकता "

    (48) लिखना , सुकून देता है ।