Avsnitt

  • भारत में गिग इकॉनमी तेजी से बढ़ रही है, लेकिन गिग वर्कर्स को कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। जनपहल नाम की संस्था ने गिग वर्कर्स पर एक सर्वेक्षण रिपोर्ट जारी की है जिसमें उनके काम के प्रति दृष्टिकोण को दिखाया गया है। यह रिपोर्ट इन प्रमुख समस्याओं पर विशेष रूप से बात करती है:

    - दिन भर में लंबे समय तक काम,

    - कम कमाई,

    - प्लेटफॉर्म्स द्वारा आईडी की मनमानी ब्लॉकिंग,

    - सालों काम करने के बाद भी कर्मचारी का दर्जा न होना और शारीरिक व मानसिक तनाव।

    इन समस्याओं को गहराई से समझने के लिए, बात मुलाकात के इस एपिसोड में स्नेहा रिछारिया ने इस रिपोर्ट की लीड ऑथर वंदना वासुदेवन से बात की। वह इस बारे में बात करती हैं कि कैसे देश में शिक्षित युवा आजीविका के विकल्प के रूप में केवल गिग वर्क पर निर्भर हैं।

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  • 2024 लोक सभा चुनाव के पहले फ्री लाइब्रेरीज़ नेटवर्क ने 'द पीपल्स नेशनल लाइब्रेरी पॉलिसी 2024' का एक ड्राफ्ट जारी किया है। इसका मकसद पुस्तकालयों के लिए मानक निर्धारित करना है। फ्री लाइब्रेरीज़ नेटवर्क पूरे दक्षिण एशिया में 250 से अधिक लाइब्रेरीज का एक नेटवर्क है। इस ड्राफ्ट में पुस्तकालयों तक निःशुल्क पहुँच की बात की गयी है। लाइब्रेरीज को बनाना और मेन्टेन करना वर्तनाम में स्टेट लिस्ट का हिस्सा है। जिला स्तर पर पब्लिक लाइब्रेरीज चलती हैं लेकिन इस ड्राफ्ट में पढ़ने की आदत को अधिकार आधारित दृष्टिकोण से देखा गया है।

    जतिन ललित उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले के रहने वाले हैं। उन्होंने लगभग तीन साल पहले अपने गाँव में 'बाँसा कम्युनिटी लाइब्रेरी' की शुरुआत की थी। जतिन पेशे से वकील हैं और फ्री लाइब्रेरीज़ नेटवर्क के महासचिव भी हैं। बात मुलाक़ात के इस एपिसोड में स्नेहा रिछारिया ने पीपल्स नेशनल लाइब्रेरी पॉलिसी ड्राफ्ट के साथ-साथ जतिन से 'बाँसा लाइब्रेरी' की शुरुआत, गाँव में पढ़ने की आदत और भारत के वर्तमान लाइब्रेरी परिदृश्य पर बात की।

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  • 21 और 22 दिसंबर 2023 को, छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले के अधिकारियों ने हसदेव अरंड जंगल में कोयला खदानों के दूसरे चरण के विस्तार के लिए सैकड़ों हेक्टेयर ज़मीन में हजारों पेड़ों को काट दिया। पिछले एक दशक से आदिवासी छत्तीसगढ़ में 1,500 किमी से अधिक क्षेत्र में फैले हसदेव अरंड जंगलों को बचाने के संघर्ष का हिस्सा रहे हैं। यह क्षेत्र भारत के आदिवासी समुदायों का घर है, जहां घने जंगलों के नीचे अनुमानित पांच अरब टन कोयला दबा हुआ है।

    "बात मुलाकात" के इस एपिसोड में, सुनो इंडिया की स्नेहा रिछारिया आलोक शुक्ला से बात करती हैं, जो छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के संयोजक हैं और एक दशक से हसदेव आंदोलन से जुड़े हुए हैं।

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  • सरकार राशन के चावल में अब उन्हें “फ़ॉर्टिफ़ायड चावल" मिला कर दे रही हैं। सराकर का दावा है की यह चावल विटामिन और आयरन का पाउडर के चूरे को मिला कर फ़ैक्टरी में तैय्यार किया गया हे। यह चावाल खून की कमी और कुपोषण को ठीक करने में मदद करेगा। डॉक्टर और वैज्ञानिको में अभी तक इस पर सहमति नहीं हैं। यह तीन हज़ार करोड़ के बजट की नयी नीति कितनी कामगार होगी, इस पर लोगों में अभी संदेह हे।
    “बात मुलाक़ात” के इस एपिसोड में वरिष्ठ पत्रकार अनुमेहा यादव ने उड़ीसा व झारखंड के किसानों से बातचीत की। गाँव में आदिवासी किसान जो खुद सदियों से धान उगाते आए हैं बताते हैं की वह इस तरीके से पोषण को ठीक करने का सही तरीका नहीं मानते। वह कहते हैं “फ़ॉर्टिफ़ायड चावल" में खाने के गुण, जैसे की पकाने पर चावाल का गाच (स्वाभाविक गोंद) और उसका स्वाद सामान्य चावाल जैसा नहीं ह। गाओं के लोग इस तरह के चावल को पसंद नहीं करते और इसे बाकि खाने से अलग कर देते हैं।

    धान व अन्य खाने में पोषण कम होने का कारण तेज़ी से लुप्त होती बीज विविधता और धान को फ़ैक्टरी में सफ़ेद से सफ़ेद बानाने की औद्योगिक क्रम और जल वायु परिवर्तन है। जहां रासायनिक खाद आदि से खेती बदल रही है, वहीं कुछ आदिवासी किसान सूनो इंडिया को बताते हैं की वह पारम्परिक भोजन व बीज बचाने की कोशश भी कर रहें हैं, ताकि पोषण, स्वाद और पर्यावरण बने रहें।

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  • कार्यस्थल पर महिलाओं के ख़िलाफ़ हो रहे यौन उत्पीड़न की रोकथाम, निषेध और निवारण के लिए 2013 में Protection of Women from Sexual Harassment Act, 2013 (PoSH) अधिनियम बनाया गया। PoSH अधिनियम कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न को रोकने के लिए नियोक्ताओं पर कानूनी दायित्व डालता है। लेकिन असंगठित क्षेत्र में काम करने वाली महिलाओं के लिए यह कारगर साबित नहीं होता।

    बात मुलाक़ात के इस एपिसोड में हम भारतीय कृषि क्षेत्र में महिला श्रमिकों पर हो रही हिंसा की बात कर रहे हैं। फेमिनिस्ट पॉलिसी कलेक्टिव और महिला किसान अधिकार मंच (MAKAAM) ने ग्रामीण महिला श्रमिकों के खिलाफ होने वाली हिंसा का अध्ययन किया। ये स्टडी कृषि क्षेत्र में महिलाओं की हिस्सेदारी और महिलाओं के लिए कार्यस्थल की परिभाषा पर कुछ बुनियादी सवाल खड़े करती है। खेतों में काम करते वक्त महिलाओं पर की जाने वाली हिंसा के क्या स्वरूप हैं? इसके छोटी और लंबी अवधि में क्या मायने हो सकते हैं? इसे समझने के लिए स्नेहा रिछारिया ने नारीवादी कार्यकर्ता सेजल दंड से बात की।

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  • मणिपुर पिछले चार महीनों से सांप्रदायिक हिंसा की चपेट में है, जिसके चलते हज़ारों मैतेई और कुकी राहत शिविरों में है। गैर सरकारी संगठन इंडियन डॉक्टर्स फॉर पीस एंड डेवलपमेंट (IDPD) के डॉक्टरों की एक टीम ने 1 से 3 सितम्बर के बीच मैतेई और कुकी क्षेत्रों में राहत शिविरों का दौरा किया।

    राहत शिविरों का दौरा करने वाले डॉक्टरों के इस समूह ने इनमे रहने वाले लोगों के पोषण, मानसिक स्वास्थ्य और सामान्य स्वास्थ्य सुविधाओं को लेकर बेहद गंभीर रूप से चिंता व्यक्त की हे। डॉक्टरों ने चेतावनी दी है कि यदि तत्काल उपाय नहीं किए गए तो राहत शिविरों में महामारी फैल सकती है। रिपोर्टर स्नेहा रिछारिया ने इन हालातों की गंभीरता और इसके उपायों को समझने के लिए डॉ. शकील-उर-रहमान से बात की। डॉ. शकील इस फैक्ट फाइंडिंग टीम का हिस्सा थे और वर्तमान में IDPD के जनरल सेक्रेटरी भी हैं।

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  • 2018 के बाद से, दुनिया के किसी भी अन्य देश की तुलना में भारत में सबसे अधिक बार इंटरनेट बंद किया गया. विरोध प्रदर्शनों से लेकर परीक्षा में नक़ल रोकने तक, भारत में इंटरनेट बंदी होती रहती है. जाहिर है की कई कारणों से सरकारें इंटरनेट बंद करती हैं.

    लेकिन इंटरनेट का अचानक बंद हो जाना आम लोगों के दैनिक जीवन पर क्या प्रभाव डालता है? ह्यूमन राइट्स वॉच और इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन ने हाल ही में एक रिपोर्ट में कहा की इंटरनेट का बंद हो जाना विशेष रूप से निचले तबके के लोगों के लिए बेहद खतरनाक साबित होता है.. कारण है सरकारी योजनाओं का डिजिटलीकरण. बात मुलाक़ात के इस एपिसोड में स्नेहा रिछारिया ने इस रिपोर्ट के सह-लेखक से बात की.

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  • बिहार में मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक पूर्वी चंपारण जिले के पांच थाना क्षेत्रों में जहरीली शराब से अप्रैल महीने में के तीसरे सप्ताह में कम-से-कम 30 लोगों की मौत हुई. इसके पहले December 2022 में सारण जिले और इसके पड़ोस में हए जहरीली शराब कांड में कम-से-कम 40 लोगों की मौत हुई थी.
    बिहार में रह-रह कर होने वाली ऐसी घटनाएं बताती हैं कि बिहार में शराबबंदी का एक समय चक्र पूरा हो चुका है. एक तरफ सरकार शराबबंदी कानून का और कड़ाई से पालन सुनिश्चित करने की बात दोहराती है तो दूसरी ओर विपक्ष इसकी समीक्षा से लेकर या इसे खत्म किए जाने की भी मांग करता है।
    बात-मुलाकात के इस एपिसोड में होस्ट मनीष शांडिल्य शराबबंदी के कई परिदृश्य से आपको रूबरू करवायेंगे। इस एपिसोड में ये सीनियर जर्नलिस्ट सोरूर अहमद, भाजपा प्रवक्ता निखिल आनंद, जदयू प्रवक्ता नीरज कुमार और सामाजिक-राजनीतिक विश्लेषक महेंद्र सुमन से बात करके शराब बंदी के पुरे परिप्रेक्ष्य को समझने की कोशिश करेंगे।

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  • राजस्थान Right to Health Bill 21 मार्च, 2023 को पास किया गया। ये बिल मरीजों के अधिकारों पर जोर देता है और इन् अधिकारों के उचित कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिए एक तंत्र प्रदान करता है। हालाँकि, 5 अप्रैल को अपनी हड़ताल वापस लेने से पहले 2 सप्ताह से अधिक समय तक निजी डॉक्टरों ने इस विधेयक का विरोध किया है। उन्होंने ने कहा की उनका सरकार के साथ समझौता हो गया हे।
    बात मुलाकात के इस एपिसोड में सुनो इंडिया की कंसल्टिंग एडिटर मेनका राव ने छाया पचौली से बात की। छाया राजस्थान की एक स्वास्थ्य अधिकार कार्यकर्ता और जन स्वास्थ्य अभियान की प्रतिनधि है। जन स्वास्थ्य अभियान देश भर में स्वास्थ्य अधिकार कार्यकर्ताओं और संगठनों का एक नेटवर्क है।

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  • इस एपिसोड में, स्नेहा रिछारिया और सुहेल भट हल्द्वानी के बनभूलपुरा क्षेत्र में 20 दिसंबर को उच्च न्यायालय द्वारा जारी किए गए निष्कासन आदेश को समझने के लिए हल्द्वानी जाते हैं। इस एपिसोड के ज़रिये हम भारत में निष्कासन और विध्वंस की राजनीति को गहराई से समझने की कोशिश करते हैं. हम यह भी समझने की कोशिश करते हैं कि क्या यह विध्वंस की राजनीति अल्पसंख्यकों को दबाने का एक ज़रिय बन गयी है? हम इसके पीछे की राजनीति और वैधानिकता को समझाते हुए इस सब को परिपेक्षय में रखते हैं।

    हम यह भी देखते हैं कि यहां के लोग रोज़गार, आवास और शिक्षा जैसे मूल भूत मसलों पर क्या सोचते हैं! इस एपिसोड में स्थानीय निवासियों, वकीलों, याचिकाकर्ताओं, सामाजिक कार्यकर्ताओं, राजनीतिक विशेषज्ञों और अन्य लोगों के साथ बातचीत शामिल है।

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  • नवंबर 1913 के मानगढ़ नरसंहार में भील जनजाति के लगभग 1,500 लोगों की मौत हुई थी। वे अंग्रेजों और क्षेत्र में रियासतों के शासकों द्वारा आदिवासी लोगों के शोषण के विरोध में वहां एकत्रित हुए थे। ब्रिटिश और भारतीय सेना ने प्रदर्शनकारियों पर हमला किया।
    इस घटना को आमतौर पर 'आदिवासी जलियांवाला बाग' के रूप में जाना जाता है क्योंकि यह उतना प्रसिद्ध नहीं है। हालाँकि, यह घटना राजस्थान में होने वाले आगामी चुनावों के चलते चर्चा का विषय बानी हुई हे। पिछले साल प्रधानमंत्री ने मानगढ़ धाम को राष्ट्रीय स्मारक घोषित किया था। जबकि राज्य की कांग्रेस सरकार ने मानगढ़ धाम में आदिवासी स्वतंत्रता संग्राम संग्रहालय बनाया हे।

    इस घटना के ऐतिहासिक और राजनीतिक महत्व को समझने के लिए बात मुलाकात के इस एपिसोड में होस्ट सूर्यतापा मुखर्जी ने डॉ. जितेंद्र मीणा से बात की। डॉ. जितेंद्र मीणा दिल्ली विश्वविद्यालय के श्याम लाल कॉलेज में इतिहास के प्रोफेसर हैं।

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  • Gambia में भारत में बने कफ सिरप पीने के बाद करीब 70 बच्चों की मौत हो गई | WHO ने अलर्ट जारी कर कहा है कि हरयाणा के Maiden Pharmaceuticals Limited में बने कफ सिरप की गुणवत्ता का स्तर काफी ख़राब था | इन samples के laboratory analysis से पता चला है कि चारों उत्पादों में दूषित पदार्थ diethylene glycol और ethylene glycol बहुत अधिक मात्रा में है |

    भारत सरकार ने इस मामले की जांच शुरू कर दी है और Maiden Pharmaceuticals Limited से सभी उत्पादन को रोक दिया है | ऐसा नहीं है कि इस तरह की यह घटना पहली बार हुई हो | जम्मू में 2020 में cough syrup पीने के बाद 19 बच्चों की मौत हो गई थी। बाद में पता चला कि हिमाचल प्रदेश में Digital Vision नामक कंपनी द्वारा बनाए गए इन सिरपों में Diethylene Glycol बहुत अधिक मात्रा में मौजूद था। 1986 में मुंबई के जेजे अस्पताल में भी ऐसी ही चूक देखने को मिली थी, जिसमें तब 14 मरीजों की मौत हो गई थी।

    बात मुलाकात के इस एपिसोड में मेनका राव ने एस श्रीनिवासन से बात की। एस श्रीनिवासन गुजरात के वडोदरा में LOCOST, एक कम लागत वाली drug manufacturing कंपनी के सह-संस्थापक हैं। वह All India Drug Action Network से भी जुड़े हैं, यह NGOs का एक स्वतंत्र नेटवर्क है जो आवश्यक दवाओं तक लोगों की पहुंच बढ़ाने की दिशा में काम करता है।

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  • नवगठित राज्य छत्तीसगढ़ में, मितानिन कार्यक्रम नामक सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता कार्यक्रम ने राज्य के स्वास्थ्य स्तर में सुधार करने में मदद की। मितानिन कार्यक्रम की शुरुआत, पूरे देश में आशा कार्यकर्ताओं को रखने के राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के फैसले से पहले की गई है।

    बात मुलाकात के इस एपिसोड में मेनका राव ने राज्य के वरिष्ठ मितानिनों में से एक मितानिन मुक्ता कुजूर के साथ बातचीत की। वह छत्तीसगढ़ के कोरिया जिले में रहती हैं और उन्हें मितानिन के रूप में काम करते हुए लगभग 20 साल हो चुके हैं | उन्होंने अपने काम के बारे में विस्तार से बात की ,और बताया कि कैसे कार्यक्रम ने उनके जीवन को बदल दिया।

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  • कंपनियों व विशेषज्ञों का मानना है की इंटरनेट अग्ग्रेगेटर कंपनियों के "गिग वर्क" में "फ़्लेक्सिबिलिटी”, या अपनी मर्ज़ी के घंटे उपलब्ध होने के कारण, यह महिलाओं को ख़ास आकर्षित करेगा, और जो महिलायें पहले से घर का ज़्यादातर कार्यभार सम्भालती हों, वह भी इस से आमदनी कमाने के नए अवसर पाएँगी पुरुषों के मुताबिक आज भी महिलायें गिग वर्क में कम संख्या में हैं। जो महिलाएं "प्लाट्फ़ोर्म" या गिग वर्क में आ रही हैं, आज भी सब कार्य क्षेत्रों में बराबरी के बजाय, सफ़ाई, सलोन, ब्यूटी पार्लर आदि, कुछ ही क्षेत्रों तक सीमित हैं।

    "काम की ज़िंदगी" के तीसरी एपिसोड में अनुमेहा यादव ने पैंतीस वर्षीय सीमा सिंह से बातचीत की, जो एक अनुभवी ब्यूटिशन हैं जिन्होंने खुद सलोन का काम सीख कर, 8-10 साल सवंतंत्र काम कर के, अर्बन कम्पनी से एक पार्ट्नर की तरह जुड़ी।अर्बन कम्पनी आज भारत के सब से बड़े सर्विस प्लाट्फ़ोर्म में हैं। यह घर के काम की सुविधाएँ जैसे की सफ़ाई, बिजली का काम आदि, और घर आ कर सलोन जैसी सुविधा ग्राहकों को देती हैं।

    October 2021 में सीमा और उनके साथ क़रीब सौ ब्यूटिशन व स्पा महिला वर्कर्स एक ऐतिहासिक सार्वजनिक प्रोटेस्ट का हिस्सा बनी। उन्होंने कम्पनी द्वारा 20 प्रतिषित से ज़्यादा कमीशन काटने का विरोध, महीने कुछ बुकिंग बिना किसी दंड के मना करने की आज़ादी, वह उनकी सुरक्षा वह स्वास्थ्य की बेहतर सुविधा की माँग ले कर अर्बन कम्पनी के हरियाणा में गुरुग्राम ऑफिस पर धरना दिया। सीमा पूछती हैं की “पार्ट्नर" नाम के इस्तेमाल के बावजूद कमिशन, फ़ीस, और कमाई आदि के नियम जब जब कम्पनी बदलती है, तो "पार्ट्नर" से कोई सहमति क्यूँ नहीं लेती? महिला गिग वर्कर्स द्वारा एक प्लाट्फ़ोर्म कंपनी की नीतियों पर सवाल, वह इस स्तर पर खुला विरोध, भारत के किसी शहर में शायद पहली बार दर्ज किया गया।

    22 अगस्त 2022 को एक प्रश्नावली का ईमेल पर जवाब देते हुए अर्बन कम्पनी प्रवक्ता मोमिता मजूमदार ने "सुनो इंडिया" को बताया की पहले के मुताबिक़ कयी नियम जैसे की कमिशन, पेनल्टी, बीमा आदि पर सुधार वह बदलाव किए जा चुके हैं और इस वह अलग विषयों पर निम्न ब्लॉग साझा किए:

    कंपनी द्वारा 29 अगस्त 2022 भेजे गए स्वास्थ्य पर किए गए खर्च राशि के विवरण में पार्ट्नर्ज़ को प्रदान किए – जिस में उन्होंने लिखा है रुपये 20 करोड़ के ब्याज-मुक्त उधार, रुपये 2 करोड़ "कोविड बीमा", रुपये 41 लाख कोविड बीमारी के कारण काम से छुट्टी के एवज में, 32 लाख रुपये कोविड में पार्ट्नर्ज़ की मृत्यु के वियोग में सहायता, वह 13 लाख रुपये आपातकालीन स्वास्थ्य सुविधा में पार्ट्नर्ज़ पर खर्च किए।

    इस के अलावा:

    Urban Company announces INR 150 Cr. Partner Stock Ownership Plan (PSOP)
    Meet our 15 PSOP awardee partners!
    Partner Earnings up 11% q-o-q | UC Earnings Index (Q3 FY22)

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  • कुछ अनुमानों के अनुसार, भारतीय उपमहाद्वीप के बंटवारे के दौरान 20 लाख लोग मारे गए और 2 करोड़ से जायदा विस्थापित हुए। इसे मानवता के इतिहास में सबसे बड़े शरणार्थी संकटों में से एक के रूप में वर्णित किया गया है, केवल द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान ही स्थिति इससे बदतर थी।

    बात-मुलाक़ात के इस एपिसोड में, होस्ट सूर्यतपा मुखर्जी यूट्यूब चैनल पंजाबी लहर के पीछे नासिर ढिल्लों से बात करते हैं। नासिर पाकिस्तान के फैसलाबाद के रहने वाले हैं, लेकिन इनके वीडियो सीमा के दोनों ओर वायरल होते रहते है। वह अब तक विभाजन से अलग हुए 200 से अधिक परिवारों को फिर से मिला चुके हैं।

    इस स्वतंत्रता दिवस पर, आइए उन सभी विभाजन परिवारों का जश्न मनाएं, जो इंटरनेट की शक्ति के कारण फिर से मिल पाए हैं।

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  • केंद्र सरकार आंगनवाड़ी सेवाओं के डिजिटलीकरण की ओर बढ़ रही है। इसका मतलब है कि आंगनवाड़ी सेवाओं से लाभान्वित होने वाले 6 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को आधार कार्ड की आवश्यकता होगी या उनके माता-पिता को अपना आधार कार्ड प्रदान करना होगा।

    बात मुलाकात की इस कड़ी में, हमारे रिपोर्टर सूर्यतापा मुखर्जी ने अंजलि भारद्वाज से इस बारे में बात की। अंजलि ने हमे बताया कि इससे बच्चों के भोजन के अधिकार में क्या बाधा आ सकती है। अंजलि सतर्क नागरिक संगठन की संस्थापक और भोजन के अधिकार अभियान की प्रमुख सदस्य हैं।

    Additional read:

    Centre focuses on access to anganwadi services for migrants | India News,The Indian Express
    When Aadhaar-related problems lead to denial of rations and benefits: what the data show | Explained News,The Indian Express
    Aadhaar Authentication for Govt Services Fails 12% of Time: UIDAI
    Aadhaar Failures: A Tragedy of Errors | Economic and Political Weekly
    UIDAI should review issue of Aadhaar to children below 5 years, mull alternates to establish unique ID: CAG – Times of India

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  • भारत में सब से पहले "गिग वर्क" शुरू करने वाले कम्पनियों में नाम आता है ऊबर, ओला का । यह “मोबिलिटी अग्गरेगटर” कम्पनी टैक्सी ऐप के माध्यम से एक टैक्सी चालक और एक यात्री को जोड़ती हैं, जिस में हर राइड के पैसे में से कंपनी एक कमिशन लेती है। ड्राइवर प्रति राइड कमा सकते हैं, और कम्पनी उन्हें अपना कर्मचारी नहीं बल्कि स्वनियोजित कारोबार , या आत्मनिर्भर फ़्रीलांसर का दर्जा देती है।

    भारत सरकार के नीति आयोग के एक रिपोर्ट के मुताबिक प्लाट्फ़ोर्म कम्पनियों टैक्सी ऐप ने 2010 और 2018 के बीच राइड्ज़ द्वारा बीस लाख रोजगार के मौके उपलब्ध कराए हैं। लेकिन इस तेज़ी से तरक्की पर चलने वाले व्यापार में आज इन कंपनियों में ड्राइवर जिन्हें कम्पनी “ड्राइवर पार्ट्नर” या साथी कह के बुलाती है, खुद को इस काम से लाभ, इसके नियम, तरीकों में कितना सहभागी बन पाते हैं?

    इन सब के अलावा एक बहुत ही महत्वपूर्ण सवाल पे हम इस एपिसोड में चर्चा करेंगे की इन मोबाइल की इन मोबाइल टैक्सी अग्ग्रेगेटर में महिलाओं की भागीदारी कितनी है, उन्हें किस तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है और उन्हें कम्पनी कितना सहयोग देती है?

    “काम की ज़िंदगी" मिनी - सीरीज के दूसरे एपिसोड में होस्ट अनुमेहा यादव ने रुक्मिणी से बातचीत की, जो की ऊबर के साथ ड्राइवर साथी के तौर पर पिछले चार साल से दिल्ली में गाढ़ी चला रहीं हैं।

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  • आज के तकनीकीकरण के दौर में हम "Gig Work" या "Platform Work " जैसे नाम बहुत सुनते हैं। इस तरह का काम बहुत सारी एग्रीगेटर
    कम्पनीज के द्वारा मोबाइल एप्लीकेशन की सहायता से संचालित किया जाता हे। इन् कम्पनीज में "फ़ूड या खाद्य एग्रीगेटर कम्पनी"  जैसे की Zomato, Swiggy, Big Basket के नाम काफी प्रचलित हैं। इस तरह के "Gig Work" के तहत लोगों को लघु या दीर्घ अवधि के लिए काम दिया जाता हे और इन् लोगों का काम एक दिहाड़ी मजदूर के सामान ही होता हे। 
    इस तरह के कम्पनियों के आने से रोज़गार के अवसर तो बढ़ें हैं, लेकिन क्या तकनीकीकरण की इस दौड़ में पारदर्शिता या काम करने वाले श्रमिक के अधिकार भी बढ़े हैं? क्या श्रमिक इस तरह के रोज़गार में एक स्थायी नौकरी और एक अच्छा जीवन जीने की चाह को पूरा कर पाते हैं? क्या वह अपनी मज़दूरी या काम के हालात खुद सुधार पाते हैं? उनकी क्या अपेक्षायें हैं?

    इन्ही प्रशनो के उत्तर और "Gig Work" या "Platform Work" के बारे में विस्तार से जानने के लिए हम लाये हैं "काम की ज़िंदगी" एक नयी  मिनी - सीरीज।  बात मुलाकात की इस नयी मिनी - सीरीज के पहले एपिसोड में होस्ट अनुमेहा यादव ने एक फ़ूड डिलीवरी वर्कर अहमद से बात की, जो कि यह काम पिछले दो साल से कर रहे हैं और करोना महामारी आने के बाद भी अपनी पढ़ाई के साथ साथ भी इन्होने ये काम जारी रखा हे। 

    सुनो इंडिया ने इन मुद्दों पर Zomato को 17 मई को ई मेल पर लिखित सवाल भेज कर और जानकारी माँगी। एपिसोड लाइव होने तक उनका इस पर कोई जवाब नहीं आया था।

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  • 2016 में बिहार ने शराब के सेवन और वितरण दोनों को अपराध बनाते हुए शराब पर प्रतिबंध लगा दिया जिसका उल्लंघन करने पर जुर्माने से लेकर कठोर सजा तक का प्रावधान है। हालांकि शराबबंदी के बावजूद प्रदेश में अवैध रूप से अधिक कीमत पर शराब बेची जा रही है, जिससे उपभोक्ता को ज्यादा खतरा है। दूसरी ओर जहरीली शराब से होने वाली मौतों के सिलसिले ने कई लोगों को हैरान कर दिया है और ये सोचने पर मजबूर कर दिया है कि शराबबंदी कानून कितना सफल है।

    बात मुलाकात की इस कड़ी में, होस्ट मनीष शांडिल्य ने शराब की लत से पीड़ित लोगों से बात की और ये जानने की कोशिश कि शराबबंदी ने उन्हें कैसे प्रभावित किया। उन्होंने राज्य में शराबबंदी के प्रभाव को समझने के लिए पटना में दिशा नशा मुक्ति और पुनर्वास केंद्र की सीईओ राखी शर्मा और क्लिनिकल साइकोलोजिस्ट डॉ. बिंदा सिंह से भी बात की।

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  • दलित संघठनकर्ता शिव कुमार जिन्होंने बाल मज़दूरी करते हुए पढ़ाई पूरी की हरयाणा के औद्योगिक क्षेत्र् में मज़दूरी, और क़ानूनी व्यवस्था में मज़दूर हक़ों के संघर्ष के घटते दायरे का ज्वलंत विवरण करते है। 
    सोनीपत के देवरू गाँव के एक भूमिहीन परिवार में जन्मे शिव कुमार की नयी किताब मेहनतकश वर्ग द्वारा पिछले दो सालों में झेली गयी अनेको तरह की हिंसा का एक व्यक्तिगत खाता है – सामाजिक सुरक्षा का आभाव, जान बचाने के नाम पर लगाए गए सरकारी लाक्डाउन में इस क्षेत्र के दिहाड़ी मज़दूरों के परिवारों को दिनों तक भूखा छोढ़ दिया जाना, वह आठ से दस घंटे खड़े हो कर काम करने के बावजूद भी सामान्य हो चुकी न्यूनतम मज़दूरी की चोरी।

    बात मुलाकात के इस एपिसोड में होस्ट अनुमेहा यादव ने शिव कुमार से उनकी किताब और उनके निजी जीवन के बारे में चर्चा की। 

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