Avsnitt
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जिन भी रीतियों का अनुसरण करके हम दीवाली का त्यौहार मनाते हैं उसके पीछे क्या पौराणिक महत्व है, ये एपिसोड इसी विषय पर प्रकाश डालता है।
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यक्ष का सन्देश लेकर मेघ अलकापुरी पहुँच जाता है। यक्ष का घर ढूँढते हुए जैसे ही मेघ झरोखे से झाँकता है तो यक्ष की पत्नी अपनी मैना से बात कर रही होती है।
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जहाँ एक ओर यक्ष की पत्नी, यक्ष की प्रतीक्षा में अपनी पलकें बिछाए बैठी हुई है, वहीं दूसरी ओर यक्ष, मेघ को प्रसन्न करने के प्रयास में लगा हुआ है। वह कैसे भी करके अपनी पत्नी को अपना सन्देश देना चाहता था, जिससे उसकी पत्नी की चिन्ता समाप्त हो सके और यक्ष का कुशलक्षेम पहुँच सके। मेघ की स्तुति करने के पश्चात यक्ष, मेघ को अपना दूत बना लेता है और सन्देश भेजने के लिए सबसे पहले मेघ को अलकापुरी तक जाने का और अपना घर ढूँढ़ने का मार्ग बताता है।
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एक ओर यक्ष अपनी पत्नी को सन्देश भेजने के लिए मेघ को मनाने में लगा हुआ था और दूसरी ओर उसकी पत्नी विरह में व्याकुल हो रही थी। सौभाग्य से उसकी सखियाँ उसके इस दुःख को बाँटने के लिए हमेशा उपलब्ध होती थीं अन्यथा एकान्त में यक्ष की पत्नी अपने प्राणों का त्याग कर सकती थी।
यक्ष की प्रतीक्षा में अब तक कई माह गुज़ारते हुए उसकी पत्नी की काया क्षीण होने लगी थी। उसके होंठों का रंग फीका पड़ गया था। उसने बाल सँवारना बन्द कर दिए थे। लगातार रोने के कारण उसकी आँखें सूज चुकी थीं और उसके चेहरे पर बाल बिखरे हुए रहते थे। यक्ष की पत्नी ने अपने आभूषण त्याग दिए थे और उसके चेहरे पर आँसुओं की धार के निशान बन गए थे।
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यक्ष ने जैसे ही मन्दिर में प्रवेश किया, वहाँ ईश्वर की मूर्ति देखकर उसे एक युक्ति सूझी। यक्ष पहले से ही मूर्तिकला में निपुण था। उसने सोचा कि अगर वह अपनी पत्नी की मूर्ति बनाना शुरू कर दे तो उसका समय बहुत ही आसानी से व्यतीत हो जाएगा।
इस तरह यक्ष ने जंगल से थोड़ी-थोड़ी मिट्टी लाना शुरू कर दिया और प्रतिदिन वो मिट्टी को गीला करके उसके कंकड़ इत्यादि निकालने लगा।
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Kuber's capital Alkapuri was considered to be the most beautiful of all the regions on earth. Beautiful and large gardens, happy subjects, huge palaces with pavilions decorated with many gems used to enhance the beauty of Alkapuri. A Yaksha lived in Alkapuri. Kubera hired him to fetch golden lotuses from Mansarovar everyday for worship. That Yaksha loved his wife very much. He was so engrossed in the love of his wife that he did not care about anything else. to know more tune into this episode.
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In Satyuga, when the tyranny of a rakshasa named Vritrasura (वृत्रासुर) increased too much, Devtas went to the refuge of Brahmaji and tried to find a solution. To this, Brahmaji said,
“Devas! Go to a maharishi named Dadhich (दधीच) and ask for his bones. He’s a very pious man, he won’t say no to you.”
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Suryadev used to revolve around Mount Meru at the time of rising and setting. Seeing him do this, Mount Vindhya said to Suryadev, “Suryadev! You revolve around Mount Meru daily. Please revolve around me too.”
Suryadev answered, “Vindhya! I don’t do it willfully, but because this path is decided by my destiny.”
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In the last episode of Agastya Katha, we got to know about the condition of Agastya Muni’s ancestors, the birth of Lopamudra and the wish of Agastya Muni. The next part of this tale is quite interesting.
To fulfil the wish of his wife, Agastya Muni was out seeking wealth. First he went to King Shrutarva because he thought that the king was quite wealthy. The king welcomed him with due respect and asked him the reason for his visit.
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There are many stories in our Puranas and Granthas which describe the power of penance performed by Rishi-Munis. Many Rishis were able to perform outstanding deeds due to this power. Once, there was such a rishi named Agastya. Worried about his marriage, he created a wife for himself in a weird way. He freed the world from the atrocities of Ilvala (इल्वल) and Vatapi and did many more astonishing things with his limitless power of digestion. All such doings of his blend together to form a very interesting tale. We have named this tale, Agastya Katha.
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On the banks of the Saraswati river at the foothills of the Himalayas, Nahusha lived in the form of a huge snake in the forest and ate the animals and humans that came near him. Due to the curse that is supposed to last for a thousand years, Nahusha had entered the Dwapar Yuga in his snake form.
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Dev Indra had been ruling Swargalok for ages and made him proud as he was blinded by the wealth and prosperity that he owned. Indralok, it was always a festive environment and on one such occasion, Indra Dev was sitting on his seat with Devi Shachi. They were enjoying the dances and songs performed by Gandharvas. Everyone present there, the Gandharva, maraud gan, rishi munis, and apsaras worshiped Indra all time long. Dev Indra was already lost in his pride and with everyone worshiping him, he became even more egoistic.
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The dynasty of Chandravansh was established by Ila, the first child ofVaivasvata Manu and Pururava, son of Chandraputra Buddh. Ayu, son ofMaharaja Pururava and Apsara Urvashi, took over the kingdom. Ayu was ajudicial and dedicated king who followed Rajdharma the same way as hisfather. Even after attaining so much opulence and splendor, the heart of theking was always saddened as he was childless. He would worry about hiskingdom as without an heir, who would look after his dynasty?
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जनमेजय का नागयज्ञ शृंखला में अब तक आपने जाना कि किस तरह जनमेजय को सरमा कुतिया ने शाप दिया, कैसे जनमेजय ने अपने पुरोहित सोमश्रवा को ढूँढ़ा। उत्तंक और जनमेजय की भेंट होना, उत्तंक की तक्षक से द्वेष भावना और परिक्षित की मृत्यु। इन सभी अंकों की अन्तिम कड़ी जनमेजय के नागयज्ञ से आकर जुड़ती है। ये सभी घटनाएँ एक बड़ी घटना को जन्म दे रहीं थीं। आइए इस शृंखला की अन्तिम कड़ी की शुरुआत करें।
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हमने अभी तक जनमेजय और उससे जुड़े सभी पहलुओं को जाना परन्तु नागों के द्वारा नागयज्ञ को रोकने के क्या प्रयास किए गए और उन्होंने इस यज्ञ में व्यवधान उत्पन्न करने के लिए कैसे प्रयोजन बनाए इस विषय पर जिज्ञासा होना बहुत ही आम है। अपनी माता से शाप पाकर नागों को अपनी नियति का भान बहुत पहले ही हो चुका था परन्तु नियति को अपने कर्मों के प्रभाव से मार्ग बदलने पर कैसे विवश किया जा सकता है इसकी चर्चा हम आज के अंक में करेंगे।
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जनमेजय का नागयज्ञ के पिछले अंक में आपने जाना कि कैसे जनमेजय की भेंट उत्तंक से हुई और उत्तंक का तक्षक से क्या द्वेष था। परन्तु सर्वप्रथम प्रश्न यह आता है कि राजा परिक्षित को ऐसा शाप किसने दिया जिस कारण वो तक्षक के दंश का शिकार हुए और उनकी मृत्यु हो गई। इस अंक में हम राजा परिक्षित की कथा के विषय में चर्चा करेंगे और जानेंगे परिक्षित की मृत्यु का कारण।
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तय नियति है तो होनी होगी वही
बँध गए इसमें तो शेष परिणाम है
जनमेजय का नागयज्ञ के पिछले अंक में आपने जाना कि किस तरह जनमेजय को सरमा ने शाप दिया और जनमेजय ने अपने पुरोहित की खोज कैसे की। इस अंक में हम चर्चा करेंगे कि किस तरह जनमेजय को नागयज्ञ करने की प्रेरणा मिली और उत्तंक का तक्षक से द्वेष कैसे हुआ।
महर्षि आयोदधौम्य के तीन शिष्य थे — उपमन्यु, आरुणि पांचाल तथा वेद। ऋषि वेद ने अपने गुरु आयोदधौम्य की आज्ञा का पालन करते हुए उनकी बहुत सेवा की जिसके परिणामस्वरूप वे स्नातक होकर गुरुगृह से लौट आए। गृहस्थाश्रम में आकर आचार्य वेद के पास तीन शिष्य रहा करते थे। उन्होंने कभी अपने शिष्यों से उस भाँति का कोई कार्य नहीं कराया था जो उन्हें अपनी छात्रावस्था में करना पड़ा। जनमेजय और पौष्य ने आचार्य वेद को अपना उपाध्याय बना लिया।
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महाभारत, कौरवों और पाण्डवों के बीच लड़ी गई अनोखी गाथा। लेकिन पाण्डवों के बाद कुरु वंश का क्या हुआ? यह एक ऐसा प्रश्न है जिसके प्रति बहुत लोगों की रुचि होगी। अर्जुन के पुत्र का नाम अभिमन्यु था और अभिमन्यु का पुत्र परिक्षित हुआ। परिक्षित के चार पुत्र हुए - जनमेजय, श्रुतसेन, उग्रसेन और भीमसेन। शमीक ऋषि के साथ हुए वृत्तान्त के कारण उनके पुत्र श्रृंगी ऋषि ने परिक्षित को शाप दे दिया जिसके पश्चात तक्षक के दंश से परिक्षित की मृत्यु हो गई। इस कथा के विषय में जब जनमेजय को भान हुआ तो उन्होंने नागयज्ञ करने का मन बनाया जिसमें सभी नागों की आहुति दी जानी थी। नागों की यह दशा उन्हीं की माता के शाप के कारण होने वाली थी। हम महाभारत की जिस कथा को जानते हैं, यह कथा वैशम्पायन ऋषि ने जनमेजय के नागयज्ञ के दौरान ही सभी उपस्थित लोगों को सुनाई थी।
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Hello listeners, This is our Shivratri special episode.
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